बुधवार, 16 नवंबर 2011

पोशीदा

लिख देना मेरे आँचल ,अपना  नाम ही सही ,
बीत  जायेगा  ये   जीवन , गुमनाम ही सही -


पूछ लेंगे हम हवाओं से ,तेरे  आशियाने को ,
बदल   डालो   नाम   या ,  मुकाम  ही   सही-


हवाओं  की आहट  को सांकल लगायें   क्यों ,
ले   आती    तेरे   देश   से  तूफ़ान   ही  सही -


खुबशूरत  बहानों का , मरकजी  खजाना तूं,
एक   बार   सच  तो कह  दे इल्जाम ही सही -


मदारी   ज़माने    का  ,  जमूरे   को   बोलता ,
मोहाजिर   से  लगते  हैं ,भगवान   ही   सही -


लिखता  फसाना  कब  जमाना  इनायत का ,
कद्रदानों   से    अच्छा ,   बेईमान  ही    सही




                                               उदय वीर सिंह

6 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

हवाओं की आहट को सांकल लगायें क्यों ,
ले आती तेरे देश से तूफ़ान ही सही -
बाँहें फैलाये खड़ी जीवटता को नमन!

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत खूब ।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

इस सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें



नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन!

सागर ने कहा…

bhaut hi khubsurat aur pyari rachna....

ZEAL ने कहा…

Great couplets Uday ji . Enjoyed reading.