बुधवार, 30 नवंबर 2011

बे-गैरत

हम    ज़माने   के   सांचों   में   ढलते   रहे ,
जैसे   बदला   जब   मौसम   बदलते   रहे- 

शोक   गीतों  को  गाने  का  मतलब न था 
हम   शहीदी   का  मतलब    बदलते   रहे-


धर्म    की   हर   किताबें  , इलाही     नजर ,
हम  तो  उनको  भी  साकी   समझते   रहे -


जब   भी   रखा   मसीहों  ने  अपने  कदम ,
क्या लियाकत!सिर-कलम उनका करते रहे-


दौर     था   जब    जहालत   से   पर्दा  उठे ,
बे -   गैरत    नशे    में    हम    सोते     रहे -


क्या   खोया , क्या  पाया ,  देख  तारीख में ,
मर्सिया ,   मौत    का   अपनी   पढ़ते    रहे -


                                               उदय वीर सिंह  


  

6 टिप्‍पणियां:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

रविकर ने कहा…

सटीक ||

बधाई ||

सुन्दर प्रस्तुति ||

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक और ख़ूबसूरत...आभार

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई .

अनुपमा पाठक ने कहा…

सटीक... सुन्दर!

Smart Indian ने कहा…

एकदम सीधी सच्ची बात, बहुत सुन्दर!