नैन बरसे कहीं भींग जाते रहे ,
जो हृदय में बसी थी सुनाते रहे -
फूल किसने दिए , शूल किसने दिए
प्रीत किनसे मिली ,दर्द किसने दिए -
नाम किसका लिखूं ये मुनासिब नहीं ,
क्या सबब था उदयऔर किसने दिए -
जो मिला हंस के दामन में भरता गया ,
कुछ रहे मेरे संग कुछ ,बिखरते गए -
शाम कब हो गयी कब सुबह हो गयी ,
मंजिलें कारवां तो बेगाफिल रहा -
पाई ठोकर की जख्मों को गिन न सके ,
हर कदम मेरी राहों में शामिल रहा -
आशिकी बन गयी दर्द मेरे लिए ,
फलसफा जिंदगी का बनाते रहे -
मेरे शीतल पवन से नमीं मांग ली ,
निचे पांवों की मेरी जमीं मांग ली -
सुनी रातों की साथी मांग ली चांदनी ,
चिराग -ए- सफ़र से रोशनी मांग ली -
जो समय ने दिया हमने हंस के लिया ,
प्रीत की रीत के गीत गाते रहे -
छोड़ जाना न तन्हां ,जमीर- ए- गजल
मुफलिसी में तुम्हें गुनगुनाते रहे-
उदय वीर सिंह
10-12-2011
जो हृदय में बसी थी सुनाते रहे -
फूल किसने दिए , शूल किसने दिए
प्रीत किनसे मिली ,दर्द किसने दिए -
नाम किसका लिखूं ये मुनासिब नहीं ,
क्या सबब था उदयऔर किसने दिए -
जो मिला हंस के दामन में भरता गया ,
कुछ रहे मेरे संग कुछ ,बिखरते गए -
शाम कब हो गयी कब सुबह हो गयी ,
मंजिलें कारवां तो बेगाफिल रहा -
पाई ठोकर की जख्मों को गिन न सके ,
हर कदम मेरी राहों में शामिल रहा -
आशिकी बन गयी दर्द मेरे लिए ,
फलसफा जिंदगी का बनाते रहे -
मेरे शीतल पवन से नमीं मांग ली ,
निचे पांवों की मेरी जमीं मांग ली -
सुनी रातों की साथी मांग ली चांदनी ,
चिराग -ए- सफ़र से रोशनी मांग ली -
जो समय ने दिया हमने हंस के लिया ,
प्रीत की रीत के गीत गाते रहे -
छोड़ जाना न तन्हां ,जमीर- ए- गजल
मुफलिसी में तुम्हें गुनगुनाते रहे-
उदय वीर सिंह
10-12-2011
10 टिप्पणियां:
आशिकी बन गयी दर्द मेरे लिए ,
फलसफा जिंदगी का बनाते रहे -
--
वाह!
प्रणय का बहुत सुन्दर चित्रगीत लिखा है आपने!
मेरे शीतल पवन से नमीं मांग ली ,
निचे पांवों की मेरी जमीं मांग ली -
सुनी रातों की साथी मंगली चांदनी ,
चिराग -ए- सफ़र से रोशनी मांग ली -
..बहुत सुन्दर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति
प्रिय शास्त्री साहब उपकृत हूँ , आप मेरी काव्य भावना को मान दे , आत्मसात,व विवेचित कर निश्छल भाव से स्नेह वर्षाते रहे हैं ,आपका बहुत -२ आदर ....हृदय से आभार प्रकट करते हैं
बेहतरीन अभिव्यक्ति, जीवन यूँ ही मगन हो बहती रहे।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना ...प्रेम में विनिमय कैसा ?
बहुत सुन्दर!
वाह ………बहुत खूब भाव विनिमय्।
मैडम ,विनम्रता से विनय भावना के साथ - आखिर साहित्यकार की पारखी नजर देख ही लेती है जहाँ प्रकाश नहीं होता .....प्रफुल्लित हूँ साथ नतमस्तक भी आपकी टिपण्णी पर / प्रेम विनिमय की वस्तु नहीं है नैशार्गिक है ,यहीं से तो समस्या है यह एकपक्षीय है तो अधुरा है ,अगर साँझा है तो विनिमय की शाला बन ही जाता है ,निर्भर करता है संवेदनाओं पर कौन ,कितना ,कैसे पाया ? .....अभिभूत होता हूँ ,साहित्य मर्मज्ञों की आषिस पाकर......../
मेरे शीतल पवन से नमीं मांग ली ,
निचे पांवों की मेरी जमीं मांग ली -
सुनी रातों की साथी मांग ली चांदनी ,
चिराग -ए- सफ़र से रोशनी मांग ली -
....बहुत भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति..
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