तुमसे बांधी है , नयनों की डोर .....डोर वे ....
अंक मेरे बसा है सुगंधों का झोंका ,
विस्मृत नहीं हैं आभार उन पलों का
आरम्भ है न कोई उनका छोर .......
व्योम में जब कहीं कोई छाई घटा ,
कब बरसोगे आँगन हृदय ,पूछता .
अधर चुप है फिर भी ,हो जाता है शोर ........
चांदनी पूर्णिमा की रश्मियाँ पूर्ण हैं ,
प्रशिक्षित दृगों में शोखियाँ कम न हैं .
तेरे कूंचे में आना ,चाहे बनना हो चोर.......
स्मृतियों में बस के चले जाओगे ,
बह चलेंगे नयन कैसे समझाओगे .
कोई आँसूओं को कब पाया बिटोर .........
तुम आओ न आओ ,तेरी कामना,
फूल वर्षायेंगे हम तेरी राह में .
हम निभाए,निभाएंगे ,चाहो तुम तोर ......
-------- उदय वीर सिंह
अंक मेरे बसा है सुगंधों का झोंका ,
विस्मृत नहीं हैं आभार उन पलों का
आरम्भ है न कोई उनका छोर .......
व्योम में जब कहीं कोई छाई घटा ,
कब बरसोगे आँगन हृदय ,पूछता .
अधर चुप है फिर भी ,हो जाता है शोर ........
चांदनी पूर्णिमा की रश्मियाँ पूर्ण हैं ,
प्रशिक्षित दृगों में शोखियाँ कम न हैं .
तेरे कूंचे में आना ,चाहे बनना हो चोर.......
स्मृतियों में बस के चले जाओगे ,
बह चलेंगे नयन कैसे समझाओगे .
कोई आँसूओं को कब पाया बिटोर .........
तुम आओ न आओ ,तेरी कामना,
फूल वर्षायेंगे हम तेरी राह में .
हम निभाए,निभाएंगे ,चाहो तुम तोर ......
-------- उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लिखा ह आपने
bahut khoobsurat prastuti.sabhi panktiyan ek se badhkar ek hain.
भाव विभोर कर गये।
बहुत ही सुंदर गीत क्या बात हैं बधाई
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
उदय जी आपकी लाजबाब प्रस्तुति मन को आन्दोलित कर रही है.
दिल से निकल रहा है 'वाह .. वाह...'
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आनेवाले नववर्ष कि आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
वीर हनुमान का बुलावा है आपको.
सुंदर प्रस्तुति रस घोल गई.
bahut hi sundar ......
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