गुरुवार, 19 जनवरी 2012

रोटी

आशा है, 
चाहत  है ,लक्ष्य है ,
प्रेम है, पूजा है 
सम्मान व ईमान है /
बिन तेरे ,
सून्य,निर्जीव ,पार्थिव है तन ,.....
नीरस जीवन ,
संस्तुति नहीं करता ,किसी 
 ऐतिहासिक ,प्रागैतिहासिक इतर लोक का /
नहीं भर सकता उदर,
कनक ,मोती ,माणिक  ,
वैभव से /
शायद इसीलिए 
मगरूर है ,संगदिल है ,
तंग दिल है रार की जड़ /
तू ओ फ़साना है ,
जिसका नहीं मिलता हल ,
ढूंढा गाँधी,आंबेडकर ने ,मार्क्स ,मनीषियों ने ,
हिटलर ,मुसोलनी,नेपोलियन की जमात ने 
पर असफलता ही हाथ /
छिनने -बचाने का
 उपक्रम जारी है ,
फिर भी ,वांछित है 
न्यारी है ,
हर जीव को प्यारी है ,
खुदा ने बनाया तुमको,
बस इतनी ही आरजू है -
तू खुदा  न बन ......../
                                       उदय वीर सिंह  
                                        19 /01 /२०१२. 
   

7 टिप्‍पणियां:

रेखा ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ...

Kailash Sharma ने कहा…

खुदा ने बनाया तुमको,
बस इतनी ही आरजू है -
तू खुदा न बन ......../

...बहुत खूब! बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता |

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
--
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
लिंक आपका है यहाँ, कोई नहीं प्रपंच।।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विश्व में अपना मान ज्ञात रहे बस..

Rakesh Kumar ने कहा…

हर जीव को प्यारी है ,
खुदा ने बनाया तुमको,
बस इतनी ही आरजू है -
तू खुदा न बन ......../

वाह! उदय जी,रोटी पर आपकी यह
प्रस्तुति अनुपम है,मार्मिक है.

आपकी सोच कमाल की है जी.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
नई पोस्ट 'हनुमान लीला -भाग ३'
जारी की है.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति, सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
new post...वाह रे मंहगाई...
उदय जी,..आप तो सिर्फ फालोवर बन कर रह गए पोस्ट पर कहीं नजर नही आते,....आइये स्वागत है