उग आई बेल
चढ़ रही परवान
धीरे धीरे
दिखाने लगी है बेल एक
रंग-रूप अनेक /
किसी साख में गुलाब ,
किसी में चमेली लाजवाब
गंधराज ,हेमपुष्पा लिली
राजीव मोगरा ,गुलदाउदी खिली
कहीं नागफनी ,कैक्टस ,बबूल
भी वजूद में
सजे तीक्ष्ण शूल
व्यतिक्रम बेसुमार ,
नागफनी में इत्र,
काँटों में सुगंध ,मद भरा रस ,
पुष्प विष भरे
मकरंद- हीन ,
मधुप आते नहीं पास
मन रीता उदास /
मैंने पूछा ये क्या है ? कैसे है ?
बोली लहराती अग्रिम पंक्ति की
लता -
प्रिय !
जब बोया शंशय, विद्वेष,घात,
छल - छद्म ,प्रतिघात,
बोई बेल भी लौटाएगी
विकृत
पुष्प -पात ...
उदय वीर सिंह
08 -02 -2012
2 टिप्पणियां:
जैसा देना हो जीवन में वैसा ही पाना होगा,
समय तथ्य क्यों झुठलायेगा, वह तो बतलाना होगा,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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