गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

* यशता - विवशता *



नग्न ,काया !
लिपटी कीचड़ में
एक सुगन्धित लेप में ,
एक दिखाने को आतुर ,
एक ढकने  को ,पत्र-बेल में ,
चपलता है -
प्रकारांतर क्षुधा शांति ,संचय जीवनास
तो रति- शाश्त्रानुसार,कैटवाक /
उपवास !
भोजनाभाव ,
तो कहीं कहीं छरहरी कयानिहितार्थ ,
निहारे जाते हैं दोनों ,
एक विकृत स्वरूपा है /
एक कला प्रतिरूपा है /
एक आभाव युक्त   है,
दूजी उन्मुक्त है /
दुरी है प्रकाश से -
एक ज्ञान के ,
एक संस्कार के /
अनावृत होते वक्ष ,
स्रोत हैं ,नव-जीवन के स्रोत का
तो दूजे ,प्रेरणा-स्रोत हैं -
कमनीयता ,वासना का /
विक्षिप्तता की सीमा शर्मिंदा है
तन उत्तरोत्तर नंगा है ,
हम तो ध्रितराष्ट्र  हैं ,
संजय कहता है -
   अंतर है नंगा होने का ,
   एक की विवशता है
   एक की उदार ,
   स्वीकार्यता है ......

                     उदय वीर सिंह .
                     09 -02 -2012
 

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विवशता और स्वेच्छा के बीच बहुत लम्बा अन्तर है, उसी के बीच चलते चलते, ग्रहण करते और त्याग करते करते, एक जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं।

vandana gupta ने कहा…

अंतर है नंगा होने का ,
एक की विवशता है
एक की उदार ,
स्वीकार्यता है ......बेहद गहन अभिव्यक्ति।

Satish Saxena ने कहा…

समाज का यथार्थ आपने सामने रख दिया भाई जी , सोंचने को मजबूर करती रचना !
आभार आपका !

Maheshwari kaneri ने कहा…

अंतर है नंगा होने का ,
एक की विवशता है
एक की उदार ,
स्वीकार्यता है ..... बहुत गहन अभिव्यक्ति।