संवेदनाएं मरने लगी हैं ..........
टूट कर आईने सा बिखरने लगी हैं
कदम-दो कदम संग नहीं चलने वाले ,
वादों में सारी उम्र देने वाले ,
ख्वाबों में ख्वाहिश संवरने लगी है -
छूटा है दामन , पकड़ते पकड़ते,
टुटा है प्याला ,होठों तक आके ,
प्रतीक्षा में रातें गुजरने लगी हैं-
हृदय बन गए हैं ,घावों की शाला ,
बुत बन गया आदमी भी निराला ,
नजरें नयन की बदलने लगी हैं -
कहीं मुफलिशी में पडोसी है रोया ,
दर्द में ही गयी रात, पल भर न सोया,
कहीं रात प्यालों में ढलने लगी हैं --
हसरत दिलों से मुकरने लगी हैं ,
बाहें वफ़ा की सिमटने लगी हैं,
कहीं हमने देखा, वो कहने लगी हैं --
उदय वीर सिंह.
19 -02 -2012
5 टिप्पणियां:
गजब की अभिव्यक्ति...
हृदय बन गए हैं ,घावों की शाला ,
बुत बन गया आदमी भी निराला ,
नजरें नयन की बदलने लगी हैं -
दिल मे घाव करती बेहतरीन प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी लगा रहा हूँ!सूचनार्थ!
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महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएँ स्वीकार करें।
hmesha ki tarah es bar bhi ak behatreen prastuti padhane ko mile ...badhai sweekaaren sardar ji .
ख्वाबों में ख्वाहिश संवरने लगी है -
सच!
आपकी लेखनी को नमन!
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