सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

मन के पार

स्पंदन   ,     सम्मोहन       दे ,
न       दूर       कहीं      जाना 
प्रतीक्षारत  प्रश्नों   के   सावन 
उत्तर   बन    के  बरस  जाना ---
                        मधुरस      गीतों     का     देकर ,
                        मधुप ,  कुसुम   की    डार  नहीं,
                        प्रेम   के  आँगन   नैन  न उलझे ,
                        रार      नहीं  ,    तकरार     नहीं -
बन जाये राग कुछ तो बोलो ,
मौन -व्रती   मत  बन  जाना--
                        उष्मित   होती  धाराएँ    कितनी ,
                         तेरे     स्नेह      का     संबल   है  
                         तम का यम का हिम का शंशय,
                         प्रलय   भी   कितना   निर्बल  है -
सुबह   गयी   दिन  भी  बीते 
पर  शाम  ढले  घर आ जाना --
                        कंगन की खनक पायल की झनक ,
                        मृदुल    संगीत    की    उपमा    है ,
                        मद - वसंत   निशिवासर    वसता ,
                        आँगन   ,   अंक      विहँसता      है -
फीके     देव ,  गन्धर्व     नगर,
हृदय    प्रीत   के   बस    जाना-
                         रश्मि   -  पुंज ,   अरुणोदय    सम
                         वलय    मलय     की   कर  सृजना,
                         आवृत     हो     तन  -   मन   सारा ,
                         साकार     बने        देखा       सपना -
विस्थापित    दुरी    हो  जाये ,
आँखें    हो     दर्पण     अपना --


                                                     उदय  वीर सिंह .
                                                      20 -02 -2012 
                             
                
  

15 टिप्‍पणियां:

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

स्पंदन , सम्मोहन दे ,
न दूर कहीं जाना
प्रतीक्षारत प्रश्नों के सावन
उत्तर बन के बरस जाना ---


गागर में सागर. आपका चिंतन बेजोड़ और अतल-वितल कि गहराइयों तक है. संवेदनाओं और चिंतन को प्रणाम. इसे उचित गति और दिशा मिले, यश और कीर्ति फैले.यह भोले नाथ से प्रार्थना है.

मनोज कुमार ने कहा…

आज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है। संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह कविता इस दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।

udaya veer singh ने कहा…

आदरणीय
डॉ. मनोज कुमार जी /
डॉ, जे पी.तिवारी जी !
सदर वंदन /
आभारी हूँ ,आपके टिपण्णी व चिंतन सरोकार का ,आप जैसे ख्यातिलब्ध ,पुरोधाओं का स्नेह मुझे मिलता है .ख़ुशी होती है अंतस में समाहित कर /
मंगल महा शिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना .....

पद्म सिंह ने कहा…

मधुरस गीतों का देकर ,मधुप,कुसुम की डार नहीं,प्रेम के आँगन नैन न उलझे , रार नहीं ,तकरार नहीं -

सुन्दर रचना ....

Smart Indian ने कहा…

सुन्दर कामना! महाशिवरात्रि पर्व पर हार्दिक बधाई!

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

सुन्दर रचना .
महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मधुरस गीतों का देकर ,
मधुप , कुसुम की डार नहीं,
प्रेम के आँगन नैन न उलझे ,
रार नहीं , तकरार नहीं -

बन जाये राग कुछ तो बोलो ,
मौन -व्रती मत बन जाना--

अद्भुत अभिव्यक्ति..

रेखा ने कहा…

सुन्दर पंक्तियों के साथ ही बेहतरीन रचना ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ओम् नमः शिवाय!
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ!

ZEAL ने कहा…

उष्मित होती धाराएँ कितनी ,
तेरे स्नेह का संबल है
तम का यम का हिम का शंशय,
प्रलय भी कितना निर्बल है -..

Awesome creation..

.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

जिंदगी इम्तहान लगती हैं
सख्त मुश्किल में जान लगती हैं
दर्द ने कैद कर लिया मुझको
साँस भी बदगुमान लगती हैं |......अनु

Kailash Sharma ने कहा…

स्पंदन , सम्मोहन दे ,
न दूर कहीं जाना
प्रतीक्षारत प्रश्नों के सावन
उत्तर बन के बरस जाना --

बहुत खूब! बहुत सुंदर ...भावों का प्रवाह अपने साथ बहा ले जाता है...

अनुपमा पाठक ने कहा…

अद्भुत!!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह,उदय जी, बहुत बढ़िया,बेहतरीन अनुपम प्रस्तुति,
पोस्ट पर आने के लिए आभार इसी तरह स्नेह बनाए रखे..
MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...

Arvind Mishra ने कहा…

मनोरम आमंत्रण गीत!