न जा,
बैठ ! पल दो पल !
पलकों में नमीं है ,
भरे हैं कोष्ठ -प्रकोष्ठ ,हृदय के
खून से ,
मष्तिष्क उलझ गया है ,
अपने बुने जाल में ,
मंजरी बन गयी है ,जिह्वा
कटु शब्दों की ,
दग्ध है अंतस
ईर्ष्या में,
पग घायल हैं
कंटक वीथिका में ,
कर यातना के सहचर ,
उदर, विद्रूप ! निगल जाने को विकल ,
सृजन !
पीठ बांध लेने को उद्दत ,
धरा की खुशियाँ ,
असहजता है कितनी ,
प्रकारांतर से .....
बस बैठ ,
पास ,
प्रीत !
मेरे पास ,
न
जा ......
उदय वीर सिंह .
22 -02 -2012
बैठ ! पल दो पल !
पलकों में नमीं है ,
भरे हैं कोष्ठ -प्रकोष्ठ ,हृदय के
खून से ,
मष्तिष्क उलझ गया है ,
अपने बुने जाल में ,
मंजरी बन गयी है ,जिह्वा
कटु शब्दों की ,
दग्ध है अंतस
ईर्ष्या में,
पग घायल हैं
कंटक वीथिका में ,
कर यातना के सहचर ,
उदर, विद्रूप ! निगल जाने को विकल ,
सृजन !
पीठ बांध लेने को उद्दत ,
धरा की खुशियाँ ,
असहजता है कितनी ,
प्रकारांतर से .....
बस बैठ ,
पास ,
प्रीत !
मेरे पास ,
न
जा ......
उदय वीर सिंह .
22 -02 -2012
6 टिप्पणियां:
marmsparshi ...bahut sunder rachna ..
प्रीत जगत की बनी रहे, इस जीवन में..
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
अपने बुने जाल में ,
मंजरी बन गयी है ,जिह्वा
कटु शब्दों की ,
दग्ध है अंतस
ईर्ष्या में,
पग घायल हैं
मर्मस्पर्शी रचना
अच्छी प्रस्तुति ..कुछ कठिन शब्दों का अर्थ भी बताएं तो अच्छा होगा..
kalamdaan.blogspot.in
बस बैठ ,
पास ,
प्रीत !
मेरे पास ,
न
जा ......
वाह...प्रीत है तो सब कुछ है... सुन्दर
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