सोमवार, 5 मार्च 2012

आधार शिला

आधारशिला विस्वास ,क्षितिज का 
दे     पायें     तो      पावन       है -
भीग  उठे  जब  सरस   हृदय    मन .
बरस    उठे      तो     सावन      है -


                नैराश्य ,वैराग्य  का   विस्थापन ,
                स्थापित   हो   आशा  की किरण-
                सुरभि    सजे    हर   डाल - डाल  
                गीत    लालित्य   गाये     उपवन -


शांति    सुधा    ले  रूप  माधुरी ,
बस      जाये     तो    आँगन है -


               द्वेष ,दुरभि    दुर्योग  दमित हो ,
               दीप   द्विप्त    कर    दे    अंतस -
               सौम्य, सरल ,सुख  का स्पंदन ,
               मूल-  मंत्र    मानवता    मंचन-


स्नेह  सलिल  सरिता की धारा ,
बह      जाये    गंगा  - जल   है-


              आखों में आस  अंक,अमिय भर,
               कण -कण माटी  का  सुघर उठे - 
               भारत   -  भारती     भाव     भरे ,
               अधरों    से    जय -भारत  उचरे -
                            निहितार्थ -


दूध ,शौर्य   संस्कार   समन्वित   
माँ     है   माँ   का   आँचल     है- 


                                        उदय वीर सिंह
                                        04 -03 -2012  



                

16 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आधारशिला विस्वास ,क्षितिज का
दे पायें तो पावन है -
भीग उठे जब सरस हृदय मन .
बरस उठे तो सावन है -

सब-कुछ है ||

आभार --

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विश्वास का आधार हो तो नैराश्य टिकता ही नहीं है..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

वाह!
आपके इस प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 05-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

Anupama Tripathi ने कहा…

शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -
बहुत सुंदर रचना ...!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...


NEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर भाव लिए हुये रचना ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
होली की शुभकामनाएँ!

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -



दूध ,शौर्य संस्कार समन्वित
माँ है माँ का आँचल है-


इन शब्दों में छिपा जिंदगी का सार हैं ....बहुत खूब

होली की शुभकामनएं

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

जीवन का उच्च आदर्श शायद यही है लेकिन हमीं मूढ़ हैं जानते हुए औए समझाने पर भी पालन नहीं कर पाते. मानव कितना परधीन और बंधन में? चाहते और मानते हुए भी कर नहीं बढ़ा पाता. आभार संवेदनाओं को जागृत करनेवाली कृति के लिए.

सदा ने कहा…

बहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
आभार !

Satish Saxena ने कहा…

आधारशिला विस्वास ,क्षितिज का
दे पायें तो पावन है -
भीग उठे जब सरस हृदय मन .
बरस उठे तो सावन है -

आनंद आ गया भाई जी ! आप गज़ब का लिखते हैं !
रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !

Kailash Sharma ने कहा…

शांति सुधा ले रूप माधुरी ,
बस जाये तो आँगन है -

....बहुत प्यारे भाव...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..होली की हार्दिक शुभकामनायें!

मनोज कुमार ने कहा…

द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो ,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
इस रचना में अलंकार की छटा निराली है। इसका आशावादी स्वर हममें एक नई ऊर्जा का संचार करता है।

मनोज कुमार ने कहा…

द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो ,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
इस रचना में अलंकार की छटा निराली है। इसका आशावादी स्वर हममें एक नई ऊर्जा का संचार करता है।

Rakesh Kumar ने कहा…

द्वेष ,दुरभि दुर्योग दमित हो,
दीप द्विप्त कर दे अंतस -
सौम्य, सरल ,सुख का स्पंदन ,
मूल- मंत्र मानवता मंचन-

बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है आपकी.
पढकर निशब्द हूँ.आनन्द में मग्न हूँ.
बहुत बहुत हार्दिक आभार.