गुरुवार, 15 मार्च 2012

आजाद कहते हैं

खारों के दरम्यान ,गुजारी है जिंदगी ,
हँसता है दुश्वारियों   में ,गुलाब कहते हैं-


टूट जाना ,बिखर जाना ,सहेजने को ख्वाब 
आवाज -ए- आवाम   को इनकलाब कहते हैं -


गुमनामी के अंधेरों में ,फ़रिश्ते रहा करते ,
गुमनाम न होने की फितरत ,चिराग कहते हैं -


लिखता है मोहब्बत के अफसाने ,ठोकरें खाने वाला 
फसाद को जमीं  देता है ,नवाब कहते हैं -


किसी रिहायिस की ख्वाहिश ,कैद करती है,
जिसका वतन अपना हो आजाद कहते हैं -


                                                        उदय वीर सिंह   

15 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut umda ghazal likhi hai daad kabool karen.

Sunil Kumar ने कहा…

किसी रिहायिस की ख्वाहिश ,कैद करती है,
जिसका वतन अपना हो आजाद कहते हैं -
बहुत खूब क्या बात है सोलह आने सही, मुबारक हो

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ग़ज़ल में अगर मतले के दो शेर होते तो बहुत अच्छा लगता!
फिर भी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, रंग जमा सबकी आजादी का..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

टूट जाना ,बिखर जाना ,सहेजने को ख्वाब
आवाज -ए- आवाम को इनकलाब कहते हैं
वाह!!!!!बहुत खूब उदयवीर जी...

गजल बहुत अच्छी लगी,....बधाई

मनोज कुमार ने कहा…

फसाद को जमीं देता है ,नवाब कहते हैं -
बहुत खूब!
बहुत सही!!

Smart Indian ने कहा…

@जिसका वतन अपना हो आजाद कहते हैं
बहुत सुन्दर!

mridula pradhan ने कहा…

खारों के दरम्यान ,गुजारी है जिंदगी ,
हँसता है दुश्वारियों में ,गुलाब कहते हैं-
wah.....kya paribhasha hai......

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

vah---------------
ब्लॉग -------साहित्य सुरभि

Satish Saxena ने कहा…

हँसता है दुश्वारियों में,गुलाब कहते हैं...
बहुत खूब भाई जी ....

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही बढि़या।

Arvind Mishra ने कहा…

वाह उदयवीर जी आपतो कमाल रचते हैं!

Shalini kaushik ने कहा…

vah bahut khoob.mere blog par aane ke liye shukriya.

Kailash Sharma ने कहा…

गुमनामी के अंधेरों में ,फ़रिश्ते रहा करते ,
गुमनाम न होने की फितरत ,चिराग कहते हैं -

...बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति..

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

हँसता है दुश्वारियों में ,गुलाब कहते हैं-

बहुत खूब...
सादर.