रविवार, 25 मार्च 2012

राम हे राम

क्यों जग  बेचे राम को ,राम न बिके  बिकाय,
राम तो सागर प्रेम का  पिए  प्यास   बुझाय /

राम  का  प्याला   पी   गए साधू ,संत फकीर .
ढूंढे   बार   हजार  न   पाए    भूप    ,  अमीर /

राम  का घर और राम को  ढूंढ़  रहे कुछ चोर ,
ह्रदय  में  बैठे राम  को कब पाया रावन जोर /

मर्म न जाने  राम का ,व्याख्या  करे    हजार ,
राम नाम व्यापार  हुआ  मंदिर  बना बाजार /

जिह्वा  प्रबचन   प्रीत  है  अंतर्मन  पाप   मलीन,
अवसर साध्य मनोरथ पूरा,कर्कस,हृदय विहीन,

कनक ,रत्न, ऐश्वर्य  भूमि ,राम के नाम सजाय ,
राम मंत्र का स्वांग धरे  मदिरालय  नाचे  गाय

राम   निहारे   राम  को ,राम   मिले   तो    राम ,
पूंजी   राम    की   राम  से , जो   खर्चे  सो  राम  /

                                                      उदय वीर सिंह 

11 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

राम के लिये जीवन उपयोग में लाने वालों के लिये राम के नाम का उपयोग अन्तहीन पीड़ा दे जाता है।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

राम निहारे राम को ,राम मिले तो राम ,
पूंजी राम की राम से , जो खर्चे सो राम ,

सब कुछ राममय है।
बहुत अच्छे प्रेरक दोहे।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

उत्तम विचारोक्ति...
सार्थक रचना....

सादर.
अनु

रविकर ने कहा…

बहुत बढ़िया भाई जी |

आभार ||

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... राम मय कर दिया आपने तो पूरा समा ... बहुत खूब ... जय श्री राम ...

Dr Xitija Singh ने कहा…

निशब्द हूँ रचना पढ़ कर ... मानो संतों की वाणी हो .. !!

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

मनोज कुमार ने कहा…

इस नवरात्र पर यह रचना उपहार से कम नहीं है।

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

राम निहारे राम को ,राम मिले तो राम ,
पूंजी राम की राम से , जो खर्चे सो राम /प्रेरक दोहे

सदा ने कहा…

राम निहारे राम को ,राम मिले तो राम ,
पूंजी राम की राम से , जो खर्चे सो राम ,
बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

Maheshwari kaneri ने कहा…

हम तो राम मय होगए..सुन्दर ,सार्थक रचना...