क्यों जग बेचे राम को ,राम न बिके बिकाय,
राम तो सागर प्रेम का पिए प्यास बुझाय /
राम का प्याला पी गए साधू ,संत फकीर .
ढूंढे बार हजार न पाए भूप , अमीर /
राम का घर और राम को ढूंढ़ रहे कुछ चोर ,
ह्रदय में बैठे राम को कब पाया रावन जोर /
मर्म न जाने राम का ,व्याख्या करे हजार ,
राम नाम व्यापार हुआ मंदिर बना बाजार /
जिह्वा प्रबचन प्रीत है अंतर्मन पाप मलीन,
अवसर साध्य मनोरथ पूरा,कर्कस,हृदय विहीन,
कनक ,रत्न, ऐश्वर्य भूमि ,राम के नाम सजाय ,
राम मंत्र का स्वांग धरे मदिरालय नाचे गाय
राम निहारे राम को ,राम मिले तो राम ,
पूंजी राम की राम से , जो खर्चे सो राम /
उदय वीर सिंह
11 टिप्पणियां:
राम के लिये जीवन उपयोग में लाने वालों के लिये राम के नाम का उपयोग अन्तहीन पीड़ा दे जाता है।
राम निहारे राम को ,राम मिले तो राम ,
पूंजी राम की राम से , जो खर्चे सो राम ,
सब कुछ राममय है।
बहुत अच्छे प्रेरक दोहे।
उत्तम विचारोक्ति...
सार्थक रचना....
सादर.
अनु
बहुत बढ़िया भाई जी |
आभार ||
बहुत खूब ... राम मय कर दिया आपने तो पूरा समा ... बहुत खूब ... जय श्री राम ...
निशब्द हूँ रचना पढ़ कर ... मानो संतों की वाणी हो .. !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
इस नवरात्र पर यह रचना उपहार से कम नहीं है।
राम निहारे राम को ,राम मिले तो राम ,
पूंजी राम की राम से , जो खर्चे सो राम /प्रेरक दोहे
राम निहारे राम को ,राम मिले तो राम ,
पूंजी राम की राम से , जो खर्चे सो राम ,
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
हम तो राम मय होगए..सुन्दर ,सार्थक रचना...
एक टिप्पणी भेजें