भोला चेहरा
बच्चा बने रहने की जिद
अध्यात्म की आड़ में पूंजीवाद ,
भटके लोगों को दिशा देने का दंभ
कितना दूर यथार्थ से,
जिसने जिया नहीं ,पढ़ा नहीं ,समझा नहीं
समाज को !
विशेषज्ञ की भूमिका में !
कलंकित करता है
शिक्षकों ,शिक्षार्थियों
शिक्षालयों को /
जो रखते हैं ,एक राष्ट्र की आधार शिला ,
निर्मित करते हैं अभेद्य दुर्ग
विचारों- की ईट से /
स्वांत- सुखाय का वाचक ,
सर्व-शिक्षा को नकारता है ,
नीति- नियामकों को
नक्सली कहने से डरता है,
उन्मादी शिक्षालयों पर नजर नहीं जाती
सरकारी -शिक्षालयों को
नक्सली
उचारता है,
छद्मवेशी की
कितनी उदारता है /
उदय वीर सिंह
बच्चा बने रहने की जिद
अध्यात्म की आड़ में पूंजीवाद ,
भटके लोगों को दिशा देने का दंभ
कितना दूर यथार्थ से,
जिसने जिया नहीं ,पढ़ा नहीं ,समझा नहीं
समाज को !
विशेषज्ञ की भूमिका में !
कलंकित करता है
शिक्षकों ,शिक्षार्थियों
शिक्षालयों को /
जो रखते हैं ,एक राष्ट्र की आधार शिला ,
निर्मित करते हैं अभेद्य दुर्ग
विचारों- की ईट से /
स्वांत- सुखाय का वाचक ,
सर्व-शिक्षा को नकारता है ,
नीति- नियामकों को
नक्सली कहने से डरता है,
उन्मादी शिक्षालयों पर नजर नहीं जाती
सरकारी -शिक्षालयों को
नक्सली
उचारता है,
छद्मवेशी की
कितनी उदारता है /
उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
उड़ते बम विस्फोट से, सरकारी इस्कूल ।
श्री सिड़ी अनभिग्य है, बना रहा या फूल ।
बना रहा या फूल, धूल आँखों में झोंके ।
कारण जाने मूल, छुरी बच्चों के भोंके ।
दोनों नक्सल पुलिस, गाँव के पीछे पड़ते ।
बड़े बड़े हैं भक्त, तभी तो ज्यादा उड़ते ।।
पर पता नहीं क्या मिलता है...
प्रस्तुती मस्त |
चर्चामंच है व्यस्त |
आप अभ्यस्त ||
आइये
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
सटीक प्रस्तुति
सटीक रचना प्रस्तुत की है आपने!
सबसे बड़े अपराधी तो वह हैं जो नक्सली बनाते हैं और उनसे अधिक कहर ढाते हैं.
आपके संकेत शायद ही वे समझ पायें !
कहने वाले कह गए....
सरकार दे सफाई....या खड़ा करे कटघरे में...
सादर.
सामयिक, सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति।
जब से सुना पढ़ा है, मुझे सरकारी स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने पर और भी गर्व हिने लगा है।
बहुत अच्छी रचना
सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ...
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