सपने तो सपने हैं, हकीकत नहीं होते ,
होते हैं भुलने को , वसीयत नहीं होते -इंसानों की बस्ती है, तमासा तो होना है ,
सपने भी इतने की, मुकम्मल नहीं होते -
सपनों में कस्रे - ख्वाब, बनते हजार हैं ,
आईना-ए- जिंदगी में, शामिल नहीं होते -
ख्वाबों की सरजमीं पर न टिकती है जिंदगी ,
कैसे वो देंगे घर , जिनके घर नहीं होते -
पानी पर कब इबारत, लिखी कहाँ गयी ,
परवाज कहाँ उड़ते, जिनके पर नहीं होते -
उदय वीर सिंह .
19/04 /2012 .
9 टिप्पणियां:
सपने तो सपने हैं हकीकत नहीं होते ,
होते हैं भुलने को ,वसीयत नहीं होते -
गहन बात ....सुंदर रचना .....शुभकामनायें ...!
बहुत सुंदर.................
अच्छे भाव समेटे.
सादर.
सराहनीय ..
सपनों में कस्रे - ख्वाब, बनते हजार हैं ,
आईना-ए- जिंदगी में, शामिल नहीं होते -
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
स्वप्नों को साकार करने में श्रम और समय चला जाता है।
खूबसूरत गजल
सपने तो सपने हैं हकीकत नहीं होते ,
होते हैं भुलने को ,वसीयत नहीं होते -
सुंदर अभिव्यक्ति,...उदय वीर जी,..बधाई
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
आखरी दोनों शेर गहराइयों तक उतर गये.वाह !!!!!
सपने सपने हैं हकीक़त नहीं होते...
लाज़वाब रचना... गहन भाव
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