रोज चढ़ते हैं एवरेस्ट पर ,फिसल जाते हैं ,
जिंदगी है कि मानती नहीं, कदम बेकार हो गए हैं -
रोजमर्रा के मर्ज इतने कि ,बेहिसाब हो गए हैं ,
ख़ुशी के दो पल भी , अब ख्वाब हो गए हैं -
रेल आरक्षण के दलाल ,यात्रा पर निलकल पड़े ,
चेहरे जरुरतमंद के , स्याह हो गए हैं -
आगे, नो स्टाक , पिछले दरवाजे से इफ़रात,
रसोई - गैस की मारामारी में ,तबाह हो गए हैं -
तिगुने दाम पर, मिलने का भरोषा मिल गया ,
अहसान कर रहे हैं , जैसे अल्लाह हो गए हैं-
राशन की दुकान खाली, चीनी तेल गायब ,
बंट गया आवाम को , क्या जवाब ! हो गए हैं-
डायल किया नहीं, कि बिल आ गया फोन का ,
हजारों के बकायेदार हम ,जनाब हो गए हैं -
बिजली का बिल आया ,तो देख ग़श आ गया ,
दो कमरे में जलती बत्तियों के बिल हजार हो गए हैं -
बच्चा पास परीक्षा में , हम फेल हो गए,
देने में डोनेसन हम , नाकामयाब हो गए हैं-
हॉउस,वाटर ,इनकम,सर्विस. टैक्स ही तो भर रहे ,
करप्सन-टैक्स भी लागु हो जायेगा आसार हो गए हैं-
उदय वीर सिंह
21 -04-2012
जिंदगी है कि मानती नहीं, कदम बेकार हो गए हैं -
रोजमर्रा के मर्ज इतने कि ,बेहिसाब हो गए हैं ,
ख़ुशी के दो पल भी , अब ख्वाब हो गए हैं -
रेल आरक्षण के दलाल ,यात्रा पर निलकल पड़े ,
चेहरे जरुरतमंद के , स्याह हो गए हैं -
आगे, नो स्टाक , पिछले दरवाजे से इफ़रात,
रसोई - गैस की मारामारी में ,तबाह हो गए हैं -
तिगुने दाम पर, मिलने का भरोषा मिल गया ,
अहसान कर रहे हैं , जैसे अल्लाह हो गए हैं-
राशन की दुकान खाली, चीनी तेल गायब ,
बंट गया आवाम को , क्या जवाब ! हो गए हैं-
डायल किया नहीं, कि बिल आ गया फोन का ,
हजारों के बकायेदार हम ,जनाब हो गए हैं -
बिजली का बिल आया ,तो देख ग़श आ गया ,
दो कमरे में जलती बत्तियों के बिल हजार हो गए हैं -
बच्चा पास परीक्षा में , हम फेल हो गए,
देने में डोनेसन हम , नाकामयाब हो गए हैं-
हॉउस,वाटर ,इनकम,सर्विस. टैक्स ही तो भर रहे ,
करप्सन-टैक्स भी लागु हो जायेगा आसार हो गए हैं-
उदय वीर सिंह
21 -04-2012
8 टिप्पणियां:
रोज चढ़ते हैं एवरेस्ट पर ,फिसल जाते हैं ,
जिंदगी है कि मानती नहीं, कदम बेकार हो गए हैं -
रोजमर्रा के मर्ज इतने कि ,बेहिसाब हो गए हैं ,
ख़ुशी के दो पल भी , अब ख्वाब हो गए हैं -
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
rojamrra ka ya drd sahana hii padata hae ,jiivan jiina hii padata hae,ati sundar rachana.
बहुत खूब, रेलवे भी निशाने पर है।
बहुत खूब भाई जी ||
दर्द भी देता मजा -
हम आजमाते जा रहे |
राशन दुकाने ठप्प हैं -
हम गम हमेशा खा रहे |
काला-बजारी जोर पर-
है कृपा उसकी पा रहे |
टैक्स देते ढेर सारे-
अब करप्सन ला रहे ||
बहुत बढ़िया ||
हॉउस,वाटर ,इनकम,सर्विस. टैक्स ही तो भर रहे ,
करप्सन-टैक्स भी लागु हो जायेगा आसार हो गए हैं-
आईडिया बुरा नहीं है. प्रणव दा अगले बज़ट में जरूर ख्याल रखेंगे.
सुंदर व्यंग बेहतरीन प्रस्तुति.
रोजमर्रा के मर्ज इतने कि ,बेहिसाब हो गए हैं ,
ख़ुशी के दो पल भी , अब ख्वाब हो गए हैं -
बढि़या ग़ज़ल।
बेहतरीन प्रस्तुति !!! लाजवाब
मज़ा आ गया.
दुखद स्थिति का मधुर चित्रण!
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