मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

उद्दबोधन

हमने  काटा  है ,  उन्होंने  बोया  था ,
वो    काटेंगे  ,  जो   हमने  बोया  है-
प्रश्न   उठते   हैं ,  कहीं   बिरानों   से ,
किसने  पाया  है , किसने  खोया  है -

     कोख  सूनी  थी ,विकल  नहीं  था मन ,
     भरी   जो   कोख , कहीं   परायी सी है ,
     अदम्य  साहस , हृदय  में ज्वाला  थी ,
     किसी  की  बंधक , कहीं समायी सी है-

टूट,   विखरा   है , जिसे   संजोया  था ,
स्वप्न    आँखों    में,  आज   रोया  है -

          यौवन,स्वप्न,जीवन अभिलाषा मन की
          सौम्य   भारत   के ,  द्वार  अर्पण   था -
          हृदय  और  सूरत   जैसी   उनकी   थी ,
          दिखा  वही सबको  ,दिखाता दर्पण था-

रक्त फूटा धमनियों से ,शांति  बोने  को,
अंगार  से  घिरा   है , फिर  भी  सोया है -

        थे  नियंत्रित  घटा ,घन ,पवन, मधुवन 
        पार्थ ,केशव की मिली ,विरासत अपनी,
        आग  हिमनद में आज  , वादियाँ सूनी,
        विषाक्त  आँचल , स्नेह  सरिता  अपनी -

प्यास खूनी है ,वक्षस्थल, मरुस्थल है ,
दर्प     जागा     है ,   ज्ञान    सोया   है -

         विभाजित हुआ हृदय,मानव से दूरियां ,
         निष्ठा   बदल  गयी , पहरु  बदल   गए ,
         पंछी एक दरख़्त के विस्थापित हो गए 
         गीत  उनके  बदले , कलरव बदल  गए- 

अभिशप्त नहीं ये धरती ,इतना तो भान है,
गौरव  पुनः   ले  आयें  , जिसे    डुबोया है-


                                                उदय  वीर  सिंह  
                                                 24-04 -2012  


          

       

13 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा और सार्थक प्रस्तुति!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर................मुराद ज़रूर पूरी होगी.......

सादर.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर................मुराद ज़रूर पूरी होगी.......

सादर.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उबारने के प्रयास तो करने ही होंगे।

S.N SHUKLA ने कहा…

विभाजित हुआ हृदय,मानव से दूरियां ,
निष्ठा बदल गयी , पहरु बदल गए ,
पंछी एक दरख़्त के विस्थापित हो गए
गीत उनके बदले , कलरव बदल गए-

sundar srijan , badhai.

S.N SHUKLA ने कहा…

विभाजित हुआ हृदय,मानव से दूरियां ,
निष्ठा बदल गयी , पहरु बदल गए ,
पंछी एक दरख़्त के विस्थापित हो गए
गीत उनके बदले , कलरव बदल गए-

sundar srijan , badhai.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,....

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत गहन भाव लिए सुंदर प्रस्तुति

sm ने कहा…

बहुत सुन्दर रचाना

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत ख़ूब!!

Rakesh Kumar ने कहा…

अभिशप्त नहीं ये धरती ,इतना तो भान है,
गौरव पुनः ले आयें , जिसे डुबोया है-

सुन्दर उद्द्बोधन.

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

विभाजित हुआ हृदय,मानव से दूरियां ,
निष्ठा बदल गयी , पहरु बदल गए ,
पंछी एक दरख़्त के विस्थापित हो गए
गीत उनके बदले , कलरव बदल गए-



वाह! बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति

मनोज कुमार ने कहा…

आशावादिता का स्वर इस कविता का प्रेरक है।