सोमवार, 30 अप्रैल 2012

दीप-ज्योति

ख़ुशी   के  दीप  जलें  मुझे   ख़ुशी   होगी  ,
आओ      करें    प्रयास    जहाँ    अँधेरा  है-

चूल्हे  बुझे  हुए ,दिवा जले तो जले  कैसे ,
विस्थापित    हो    तम ,  बनाये   डेरा है -

एक दिन कीदिवाली से दीप्त  नहीं आँगन ,
हर शाम उजारी हो ,एक  ख्वाब उकेरा है -

जले  न  दिल , न   बुझे  चिरागे -  हसरत ,
जाये  कहीं  दूर , जिसने  पथ  को  घेरा है -

पढ़ सकें अनुबंध , इतनी तो  रोशनी पायें,
कह  सकें  रात  गयी , कल  प्रभात मेरा है 

हँसता ही रहे सदा,दिलो,दिवाली का दिया,
हर   द्वार ,  शिवालों   में   इंतजार   तेरा  है 

                                                                 उदय वीर सिंह .
                                                                   30 -04 -2011   

13 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

पढ़ सकें अनुबंध , इतनी तो रोशनी पायें,
कह सकें रात गयी , कल प्रभात मेरा है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....वाह

virendra sharma ने कहा…

आपकी इस ग़ज़ल ने डटके तम को घेरा है .बहुत बढ़िया रचना है आशा के दीप जलाए हुए ,सकारात्मक स्वरों के साथ .

कृपया यहाँ भी पधारें
सोमवार, 30 अप्रैल 2012

सावधान !आगे ख़तरा है

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रविवार, 29 अप्रैल 2012

परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब

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रविवार, 29 अप्रैल 2012

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धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

पढ़ सकें अनुबंध , इतनी तो रोशनी पायें,
कह सकें रात गयी , कल प्रभात मेरा है,

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,
वाह,..बेहतरीन रचना,....

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कल के प्रभात की उम्मीद है...

मनोज कुमार ने कहा…

चहुं ओर प्रकाश बिखरे यही कामना है।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

एक दिन कीदिवाली से दीप्त नहीं आँगन ,
हर शाम उजारी हो ,एक ख्वाब उकेरा है -

बहुत सुंदर
सादर.

देस परदेस /ਦੇਸ - ਪ੍ਰਦੇਸ ने कहा…

एक दिन कीदिवाली से दीप्त नहीं आँगन ,हर शाम उजारी हो ,एक ख्वाब उकेरा है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

देस परदेस /ਦੇਸ - ਪ੍ਰਦੇਸ ने कहा…

एक दिन कीदिवाली से दीप्त नहीं आँगन ,हर शाम उजारी हो ,एक ख्वाब उकेरा है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

Anupama Tripathi ने कहा…

''कल कि तरह आज भी सूरज निकलेगा ...
होगी प्रदक्षिणा नभ के पथ पर प्रभामायी ...''
आशावादी सुंदर रचना ....
शुभकामनायें ....!!

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

चूल्हे बुझे हुए ,दिवा जले तो जले कैसे ,
विस्थापित हो तम , बनाये डेरा है -

एक दिन कीदिवाली से दीप्त नहीं आँगन ,
हर शाम उजारी हो ,एक ख्वाब उकेरा है -


बेहद उत्कृष्ट रचना है यह.
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें...

virendra sharma ने कहा…

दीप-ज्योति
ख़ुशी के दीप जलें मुझे ख़ुशी होगी ,
आओ करें प्रयास जहाँ अँधेरा है-

चूल्हे बुझे हुए ,दिवा जले तो जले कैसे ,
विस्थापित हो तम , बनाये डेरा है -

कृपया रचना निस्संदेह में -सह-मात के स्थान पर शह मात लें .

कृपया यहाँ भी पधारें -
डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन

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सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

urja se bahrti hui bahut hi sashkt rachna...............

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

yah rachna aaur nisandeh dono rachna padhi..sadar badhayee aaur amantran ke sath