हो अरुणोदय ,सुप्रभात यश -गान
सतत तुम्हारा दिनकर -
सतत तुम्हारा दिनकर -
खिले पुष्प गुच्छ ,तरुनाई कोपल मांगे
खग -बृंद सहज आनंद, मधुरतम मांगे
ताम्र वर्ण, नव , नभ - प्रभा आलोकित ,
क्षितिज सरल, सहज आँगन मांगे -तुषार जड़ित , हर कुसुम पात,
किसलय में धमक तुम्हारा दिनकर-
शुभ्र , रश्मियों के डेरे , फैलाये बांह ,
साधक , सिद्ध, शैव आराधन मांगे-
मिटे कलुष , पाप , उद्वीप्त हृदय हो ,
सर्व- जन सुखाय,समृद्धि का वर मांगे -
उर्जा- नवल , नव - शक्ति - पुंज ,
निधि उपहार -तुम्हारा दिनकर-जले तम , उर का , विकसित हो ,
चेतना ,यश ,अर्जन ,सुखद जीवन -वैर , नैराश्य , प्रतिकार, हीनता
हो विलुप्त , निष्पाप बने अंतर्मन -
प्रतीक्षारत कोष , किरण देखे,
हृदय से आभार,तुम्हारा दिनकर-
जल, थल, व्योम , दिग - दिगंत ,
सुर, नर , असुर , यक्ष , गन्धर्व -
चराचर,मूर्त,अमूर्त ,पुरा - नूतन ,
संचार बिन अपूर्ण ,जीवन वैभव -
निर्विघ्न गमन , निर्वात ,वात,
सृजन- सृष्टि काहस्ताक्षर दिनकर-
अर्पित,अर्घ, पयोधि विनीत ,नित
मंगल गान तुम्हारा दिनकर -
उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
जले तम , उर का , विकसित हो ,
चेतना ,यश ,अर्जन ,सुखद जीवन -
वैर , नैराश्य , प्रतिकार, हीनता
हो विलुप्त , निष्पाप बने अंतर्मन -
सुंदर अति सुंदर रचना ,......
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
शब्दों की प्रकाशमयी थिरकन सी रचना।
सुन्दर प्रस्तुति |
शुभकामनाएं ||
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सुन्दर-सुन्दर शब्दों से सुसज्जित बेहद प्रभावशाली रचना....शुभकामनाएं ||
शब्दों के अभिनव प्रयोगों से कविता ओजपूर्ण है भावपूर्ण है.
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....शब्दों का सुन्दर संयोजन..
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