बुधवार, 16 मई 2012

माना कि धरातल ..


माना कि धरातल ..


माना   कि  धरातल  ये  समतल नहीं है  ,
सागर  भी  है , सिर्फ   मरुस्थल   नहीं है,
समानांतर   रेखाएं  , माना  न   मिलतीं ,
दिशा    और   दूरी   में   विचलन  नहीं है 

कहीं   शाम   ढलती    कहीं   पर  सवेरा ,
प्रभाकर     कहीं  ,  चाँद    डाले   है   डेरा
कहीं   नींद   में  पुष्प,  कहीं   मुस्कराए ,
कहीं   नीड़  में  खग , कहीं  नभ को घेरा


रेत  में   भी  बही   है , गंगा   कि   धारा,
तपस्या  भगीरथ   की   निष्फल नहीं है-


शीत   मेघों   के  घर, दामिनी  भी   बसे ,
पाषाणों   के  अंतस,  है शीतल सी  धारा-
पादप   कंटीले  ,  केवल   कांटे   न   देते ,
मीठे    फलों  , पात  ,   फूलों   को   वारा -


आँखों   में , सागर  में,  सावन में   पानी ,
अर्थ  पानी  का  केवल,गंगा-जल नहीं है-  

कर्णप्रिय सुर मधुर. मृत बांसों से स्वर ले,
वाद्य -यंत्रों  ने . स्वर  की  भाषा  लिखी है -
विष   भी  है , औषधि  का  संचार  साधन
मरने वालों ने, अमरता की गाथा लिखी है-


माना    की    जीवन   मुकम्मल  नहीं  है  
फिर   भी   निराशा   का   स्थल   नहीं  है-


                                          उदय वीर सिंह  
                                            16-05-2012





11 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

फिर भी जीवन में कुछ तो है...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह !!!!! क्या बात कही,...

माना की जीवन मुकम्मल नहीं है
फिर भी निराशा का स्थल नहीं है-

बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,

मनोज कुमार ने कहा…

इस गीत मेम एक संगीत है। इस संगीत की धुन, लय ताल मन को हरते हैं।

सदा ने कहा…

माना की जीवन मुकम्मल नहीं है
फिर भी निराशा का स्थल नहीं है-
वाह ... अनुपम भाव संयोजित करती हैं यह पंक्तियां ... आभार उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया...!

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत भावो की सुन्दर प्रस्तुति...

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Rajesh Kumari ने कहा…

आशावादिता के उन्नत भावों से सुसज्जित बेहतरीन कविता ....बधाई

नीरज द्विवेदी ने कहा…

Bahut Sundar Kavita .... Bahut kuchh hai jeevann mein.

ZEAL ने कहा…

कर्णप्रिय सुर मधुर. मृत बांसों से स्वर ले,
वाद्य -यंत्रों ने . स्वर की भाषा लिखी है -
विष भी है , औषधि का संचार साधन
मरने वालों ने, अमरता की गाथा लिखी है...

Awesome..

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बेनामी ने कहा…

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