रविवार, 20 मई 2012

लहलहाती फसल अफीम की ....


खिलकर   कीचड़   में हमने आसन बनते
 ऐश्वर्य         का   ,    कमल        देखा    है -

अनुत्तरित   है  रोटी  का प्रश्न ,  लहलहाती 
हुयी ,  अफीम     की     फसल     देखा   है -

कर्मयोगी  की  नंगी ,नुमायिस बनी लाश
 कुत्तों     को     रेशमी     कफ़न     देखा   है  -


खुद्दारी  व   ईमानदारी   के  पैरोकारों  की 
मौत  पर ,  हंसती   हुयी   नसल   देखा  है  -

किसने  कहा  की शाम होती  है  सवेरा भी 
दर्द   की   आँखों  में,  सदा  अँधेरा  देखा  है -

तासीर देख इन्सान की इंसानियत गवारा
 नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा  है -


न मिलने का हलफ लेते हैं, खून और खंजर 
उदय    सरेआम   उनका   वसल     देखा  है-


मांगता रहा  सिजदे  में ,फकत दो वक्त  की 
रोटी ,क्या मिला दामन  में ,फजल  देखा है- 


                                                     उदय वीर सिंह  



14 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यह देश विशेष है,
न जाने क्या क्या देखना शेष है।

udaya veer singh ने कहा…

इस देश को विशिष्ट बनाने वाले हमीं -आप हैं ....कितना विशिष्ट बनेगा अभी ...भविष्य के गर्त में है परंतु जो आज इबारत वर्क पर लिखी जा रही है ,किताब के अंजाम का अहसास होता है .......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

किसने कहा की शाम होती है सवेरा भी
दर्द की आँखों में, सदा अँधेरा देखा है -
तासीर देख इन्सान की इंसानियत गवारा
नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा है

वाह ,,,, बहुत सुंदर अच्छी प्रस्तुति

RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खुद्दारी व ईमानदारी के पैरोकारों की
मौत पर , हंसती हुयी नसल देखा है -

सटीक और सार्थक रचना ... न जाने क्या क्या देखना बाकी है ...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 21-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-886 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

Smart Indian ने कहा…

कवि की व्यथा स्पष्ट है - सामाजिक विरोधाभास की अति हो रही है।

रविकर ने कहा…

आभार |
बढ़िया प्रस्तुति ||

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति ......

virendra sharma ने कहा…

अनुत्तरित है रोटी का प्रश्न , लहलहाती
हुयी , अफीम की फसल देखा है -हर अश- आर अर्थ गर्भित कटाक्ष लिए देखा है इस ग़ज़ल का ,
हमने वाकई आज फिर हुनर देखा है .
बढ़िया ग़ज़ल .बधाई स्वीकार करें .

Maheshwari kaneri ने कहा…

खुद्दारी व ईमानदारी के पैरोकारों की
मौत पर , हंसती हुयी नसल देखा है .....बहुत सुन्दर सार्थक और सटीक रचना -

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

तासीर देख इन्सान की इंसानियत गवारा
नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा है
न मिलने का हलफ लेते हैं, खून और खंजर
उदय सरेआम उनका वसल देखा है

शानदार.....बेहतरीन ग़ज़ल ....

मनोज कुमार ने कहा…

कर्मयोगी की नंगी ,नुमायिस बनी लाश
कुत्तों को रेशमी कफ़न देखा है -

यह हमारे समाज की हक़ीक़त ह। विडम्बना।

Satish Saxena ने कहा…

किसने कहा की शाम होती है सवेरा भी
दर्द की आँखों में, सदा अँधेरा देखा है

बड़ी प्यारी रचना है भाई जी ...
आभार !

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

कितने गहन अर्थ छुपे है इन चंद अशआरों में...
बहुत सुंदर...

सादर.