प्रीत न बांधों रीत में ,बिन बांधे बंध जाय,
पावक -पुंज, सनेह सम ,ज्यों बारे जल जाय -प्रश्न - पयोधि से दूर है ,प्रीत संग है मीत ,
शंसय की बंशी परी , तिरीसठ हो छत्तीस-
शहनाई न जानती , बाजे मोल - बेमोल,
हृदय में बजते राग को,क्या जाने डफ व ढोल-
पलक को लागा हाथ कब ,आंसू को कब पांव,
गति निरंतर साथ है , बादल को कब छाँव-
टूटे श्वांस न जीव है , टूटे स्वर नहीं गीत,
अधर सजे जब गीत हों ,मुक्त हार और जीत-
तरुअर छोड़े छाँव को , सागर छोड़े नीर,
विरहन छोड़े गाँव को , हृदय न छोड़े पीर-
पथिक पड़ोस न पूछता , पूछे अग्रिम ठौर ,
रात बितायी चल पड़ा ,लगन हृदय की और-
पांव , पथिक ,पथ ,पालना ,जो पाए विश्राम,
अवसर चूक अधोगति , नींद परायी धाम-
आँखों में सपना बसे , काजल से धुंधलाय,
कारे केश घटा बन छाये , सावन सुना जाय-
उदय वीर सिंह .
22- 05 - 2012
14 टिप्पणियां:
पथिक पड़ोस न पूछता , पूछे अग्रिम ठौर ,
रात बितायी चल पड़ा ,लगन हृदय की और-
वाह ,,,, क्या बात है,,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
सभी लाजवाब दोहे - एक से बढकर एक! आज तो छा गये आप।
पांव , पथिक ,पथ ,पालना ,जो पाए विश्राम,
अवसर चूक अधोगति , नींद परायी धाम...
awesome...
.
पढने में आनंद आया ..धन्यवाद
खूबसूरत रचना ||
पांव , पथिक ,पथ ,पालना ,जो पाए विश्राम,
अवसर चूक अधोगति , नींद परायी धाम-
अद्भुत...वाह...इस बेजोड़ प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें...
नीरज
पलक को लागा हाथ कब ,आंसू को कब पांव,
गति निरंतर साथ है , बादल को कब छाँव-
सीख देते दोहा-सुमनों का सुंदर गुलदस्ता।
इतने सुन्दर दोहे सब के सब दोहें..
वाह, बहुत बढ़िया रचना.
पथिक पड़ोस न पूछता , पूछे अग्रिम ठौर ,
रात बितायी चल पड़ा ,लगन हृदय की और-
...बहुत खूब ! बहुत सुन्दर....
सुंदर रचना ...
कलर बदल दें तो पढने में आसानी होगी !
शुभकामनायें आपको !
सुन्दर दोहे
बेहतरीन
आप तो बहुत ठेठ हिंदी लिख देते हैं जी.
मित्र मैं पहली बार किसी को अपनी हिंदी के बारे में धन्यवाद देना चाहता हूँ ,जैसा अपने मुझे प्रशंसित किया ... भाषाओँ को हमने चुनौती के रूप में लिया / मेरे लेक्चर को स्कालर व काव्य को श्रोता बड़े ही मनोयोग से सुनते हैं ,ऐसा क्यों है ,यह मैं भी नहीं जनता .... अच्छा लगा जी आपकी टिपण्णी / साधुवाद ! काजल कुमार जी
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