रविवार, 27 मई 2012

प्रतिदान

न देखी  गयी
जवान बेटे की वेदना ,
हाथ जोड़े ,अश्रु  भरे नेत्र ,
दारुण पुकार !
हे ! कलयुग के भगवान  !
मेरा गुर्दा ,
मेरे बेटे को लगा दो ...../
आलम्ब है ,
अपने मासूम शावकों का ,
भार्या ,माँ बाप का 
आधार स्तम्भ है ,
गिरने से बचा लो ...../
जांचोपरांत ,
पाया गया -
प्रत्यारोपण  संभव  नहीं
गुर्दा  मात्र  एक  है.........
विस्मित  नेत्र ,पूछते हैं प्रश्न-
क्यों ? कैसे  ? 
क्या  ईश्वर  ने मुझे एक ही गुर्दा दिया था ?
नहीं ...चिकित्सक बोला -
खो  चुके  हैं ,     .... 
कही स्मृति दोष तो नहीं आप को  ?....
हाँ  दोष है ,स्मृति का नहीं 
विपन्न ,व असहाय  होने का.......
छिनैती को आपकी भाषा में 
शायद खोना  कहते हैं /
अदालत में मुंसिफ 
लाम  पर सैनिक 
दोपहर में सूरज ,
खो जाता है ,
फिर हार्निया  के आपरेशन  में 
गुर्दा खो जाये 
तो आश्चर्य नहीं.....
बधाई है डाक्टर, 
आप की स्मृति
शेष है ,
शायद ,मनुष्यता की 
राख  ही
अवशेष 
है  ......


                                      उदय वीर सिंह 
                                       27 - 05 - 2012







13 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत संभव है यह, आजकल की परिस्थितियों में।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

प्रहार है डॉक्टरों पर......
जिन पर हम सबसे अधिक विश्वास करते हैं वही ठग लेते हैं....

सादर.

Kailash Sharma ने कहा…

शायद ,मनुष्यता की
राख ही
अवशेष
है ......

....जब इंसानियत न हो तो सब कुछ संभव है...बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

संध्या शर्मा ने कहा…

जिन्हें भगवान का दर्जा दिया था अब हैवान बन चुके हैं, सेवा भाव मर चुका है. आजकल सबकुछ सिर्फ व्यवसाय बनकर रह गया है, फिर ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं. मार्मिक रचना... सादर

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ओह,
यही हो रहा है आजकल।

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 28-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-893 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कुछ भी हो सकता है ...

अजय कुमार झा ने कहा…

101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है
एक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

उदय वीर सिंह जी, आपकी रचना मन को छु गयी सुंदर प्रस्तुति,,,,,

RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

virendra sharma ने कहा…

चिकित्सा हालात पर बेहतरीन तप्सरा है यह रचना .गुर्दा क्या यहाँ तो बस चले तो दिल दिमाग भी चोरी हो जाए .....
और यहाँ भी दखल देंवें -
ram ram bhai
सोमवार, 28 मई 2012
क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस
http://veerubhai1947.blogspot.in/

सदा ने कहा…

शायद ,मनुष्यता की
राख ही
अवशेष
है .....
सार्थक भाव लिए ...

Suresh kumar ने कहा…

Marmeek rachna.....