बुधवार, 30 मई 2012

उड़ने को ..


उड़ने     को      आसमां     है 
घर   बनाने  को  जमीं होती -

अश्कों     का   सिलसिला  है 
जब  आँखों  में , नमीं   होती-

आते   हैं  , ख़यालात    बहुत ,
जब  किसी  की,  कमीं  होती-

बनती    है     गल ,   फ़साना ,
जब मोहब्बत से बेरुखी होती -

हर्फ़ - ए -  वरक   मुफीद   है ,
जो   किताबों  में  नहीं   होती -

कहने        को      दासतां    है ,
जो   यादों    में,   बसी    होती-

हिजाबों      में    घर     बनाते,
अदाएं   जो    मखमली   होतीं-

                                 --- उदय वीर सिंह 

                         

  

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना! आभार...!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, बहुत खूब..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बनती है गल , फ़साना ,
जब मोहब्बत से बेरुखी होती -

वाह ,,,, बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,बधाई

RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत गज़ल

ZEAL ने कहा…

उड़ने को आसमां है
घर बनाने को जमीं होती -
अश्कों का सिलसिला है
जब आँखों में , नमीं होती-...

कोमल एहसासों की लाजवाब अभिव्यक्ति।

.

अरुन अनन्त ने कहा…

बेहद खुबसूरत
(अरुन =arunsblog.in)

Asha Joglekar ने कहा…

अश्कों का सिलसिला है
जब आँखों में , नमीं होती-

आते हैं , ख़यालात बहुत ,
जब किसी की, कमीं होती-

बहुत खूब ।

prritiy----sneh ने कहा…

pyari rachna, achha laga pathan

shubhkamnayen