उड़ने को आसमां है
घर बनाने को जमीं होती -
अश्कों का सिलसिला है
जब आँखों में , नमीं होती-
आते हैं , ख़यालात बहुत ,
जब किसी की, कमीं होती-
बनती है गल , फ़साना ,
जब मोहब्बत से बेरुखी होती -
हर्फ़ - ए - वरक मुफीद है ,
जो किताबों में नहीं होती -
कहने को दासतां है ,
जो यादों में, बसी होती-
हिजाबों में घर बनाते,
अदाएं जो मखमली होतीं-
--- उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना! आभार...!
वाह, बहुत खूब..
बनती है गल , फ़साना ,
जब मोहब्बत से बेरुखी होती -
वाह ,,,, बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,बधाई
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
खूबसूरत गज़ल
उड़ने को आसमां है
घर बनाने को जमीं होती -
अश्कों का सिलसिला है
जब आँखों में , नमीं होती-...
कोमल एहसासों की लाजवाब अभिव्यक्ति।
.
बेहद खुबसूरत
(अरुन =arunsblog.in)
अश्कों का सिलसिला है
जब आँखों में , नमीं होती-
आते हैं , ख़यालात बहुत ,
जब किसी की, कमीं होती-
बहुत खूब ।
pyari rachna, achha laga pathan
shubhkamnayen
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