विष-दन्त गिरे ,विष- भाव मरे
विष-हीन कभी तो हो जाएँ -
जस चन्दन स्वीकार नहीं विष
हम चन्दन सम हो जाएँ -
स्निग्ध, विनीत, हृदय की वीथी
भाव विहंगम श्रद्धा वरसे -
आत्म-प्रवंचन ,श्लाघा, अवगाहन
अतिशय प्रेम - सुधा छलके -
हर कोष , कली ,मकरंद भरे ,
काँटों को, कहीं हम दे आयें -
विषद प्राचीर महल ऊँचे हैं
हृदय न विस्तृत हो पाया -
कंचन सम तोला प्रीत - कुसुम,
न प्रेम का भाव समझ पाया-
विष-बेल की शाख में आग लगे ,
विष - रस को गह्वर दे आयें-
विष-घट सूखे प्रज्ञा की अगन ,
बिखरे टूट , विष का प्याला -
विष - पान करते दग्द्ध हृदय,
अमृत पाए तज , मद्शाला -
विष- वमन, अधर को ना कह दे ,
विष -कंठ कहीं हम खो आयें -
द्वेष , दमन , षड़यंत्र , ईर्ष्या ,
विष - कन्या , मानस की गली-
स्थान न हो मृदु जीवन में ,
दे दो , इनको सागर की तली -
अमृत- प्रतिदान, गरल पीकर,
नील - कंठ को , जी आयें-
उदय वीर सिंह.
01 - 06 - 2012
विष-घट सूखे प्रज्ञा की अगन ,
बिखरे टूट , विष का प्याला -
विष - पान करते दग्द्ध हृदय,
अमृत पाए तज , मद्शाला -
विष- वमन, अधर को ना कह दे ,
विष -कंठ कहीं हम खो आयें -
द्वेष , दमन , षड़यंत्र , ईर्ष्या ,
विष - कन्या , मानस की गली-
स्थान न हो मृदु जीवन में ,
दे दो , इनको सागर की तली -
अमृत- प्रतिदान, गरल पीकर,
नील - कंठ को , जी आयें-
उदय वीर सिंह.
01 - 06 - 2012
12 टिप्पणियां:
समर्पण और सरलता की पराकाष्ठा है आपकी रचना, न च मे प्रवृत्तिः..
विषद प्राचीर महल ऊँचे हैं
हृदय न विस्तृत हो पाया -
कंचन सम तोला प्रीत- कुसुम,
न प्रेम का भाव समझ पाया-
बहुत बढ़िया समर्पण भाव की सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
विष-घट सूखे प्रज्ञा की अगन ,
बिखरे टूट , विष का प्याला -
विष - पान करते दग्द्ध हृदय,
अमृत पाए तज , मद्शाला -
विष- वमन, अधर को न कह दे ,
विष -कंठ कहीं हम खो आयें -
काश ऐसा हो सके .... बहुत सुन्दर भावों को संजोये उत्कृष्ट रचना
आमीन...
सुंदर छंदों में गूढ़/प्रेरक अभिव्यक्ति हो पाई है।
हम चन्दन सम हो जाएँ -
यह पावन संकल्प हम सबके मन में प्रस्फुटित हो...
बेहद सुन्दर कविता!
क्या भाव हैं इस खुबसूरत गीत में... वाह!
सादर बधाई स्वीकारें.
शब्द शब्द ह्रदय को छूने वाली....उत्कृष्ट रचना
ati sunder!
shubhkamnayen
सुंदर सृजन।
chandan sam banne kii prabal ichchha jagaatii ...bahut sundar rachna ...!!
abhar.
बहुत ही अच्छा सोच ... मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका आभार
अमृत- प्रतिदान, गरल पीकर,
नील-कंठ को , जी आयें-
तभी रुकेगा विष वमन और
अमृतमय होगा जीवन ।
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