मंगलवार, 19 जून 2012

परिभाषाएं अपनी अपनी

परिभाषाएं  ,  अपनी   अपनी
    आशाएं   ,   अपनी       अपनी-
              मधुशाला  का   महिमा  मंडन
                 आशीष    वचन   से   लगते  हैं,
                    ख्यातिलब्धता    हो ,   आँचल,
                       शिष्ट ,   अशिष्ट     कह   लेते  हैं -
हृदय    से    खोया ,   स्पन्दन ,
    इच्छाएं       अपनी      अपनी-
              पथ     काँटों    के  ,  फूल      कहें ,
                 गुल -  गुलशन  को ,   शूल   कहें ,
                   किसलय कली प्रसून की क्यारी ,
                      रचनाकार       की      भूल    कहें -
गमित  हुए  पग, पथ में अपने
     दिशाएं      ,  अपनी        अपनी -
              माँ  सी  ममता, दूध  सृजन  का,
                 गौ   -   माता      कह     लेते    हैं-
                    पीकर     पय ,   न    क्षुधा  गयी
                        क्षण      में     वध ,   कर  देते  हैं-
स्नेह     समर्पण     बाजारी   है
      निविदाएँ   ,  अपनी      अपनी-
               ये    राष्ट्र ,  भोग   की  वस्तु   है
                   या ,   जीवन    है   आराधन  है-
                      आतंकी  ,   हंताओं     का    घर ,
                          या      वीरों      का    आंगन   है -
राष्ट्र -गीत ,यश,  वंचक  की धुन
      भाषाए         अपनी        अपनी-


                                                उदय वीर सिंह 
                                                  18- 06 - 2012
     




   



9 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-

सुंदर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण रचना,,,
उदय जी बधाई,,,,

RECENT POST....: न जाने क्यों,

मनोज कुमार ने कहा…

परिस्थितियां तो सबके सामने हैं, सब अपनी-अपनी परिभाषाएं गढ़ लेते हैं।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी

वाह , स्पष्ट सच्ची पंक्तियाँ

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जिसको सब उठ श्रेष्ठ कह उठें, वही श्रेष्ठ होने लगता।

virendra sharma ने कहा…

माँ सी ममता, दूध सृजन का,
गौ - माता कह लेते हैं-
पीकर पय , न क्षुधा गयी
क्षण में वध , कर देते हैं-
स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी-
ये राष्ट्र , भोग की वस्तु है
या , जीवन है आराधन है-
आतंकी , हंताओं का घर ,
या वीरों का आंगन है -
राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-
अंत की और बढ़ते बढ़ते रचना राष्ट्री स्वर ले लेती है एक पीड़ा और कसक व्यंजना के संग .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सब कुछ उल्टा पुल्टा है ...सबकी अपनी परिभाषाएँ हैं ...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

सुन्दर....
गहन भावाव्यक्ति.

सादर

अनु

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ , अपनी अपनी-
ये राष्ट्र , भोग की वस्तु है
या , जीवन है आराधन है-
आतंकी , हंताओं का घर ,
या वीरों का आंगन है -
राष्ट्र -गीत ,यश, वंचक की धुन
भाषाए अपनी अपनी-


बहुत सार्थक और सशक्त भावाभिव्यक्ति....

रचना दीक्षित ने कहा…

स्नेह समर्पण बाजारी है
निविदाएँ, अपनी अपनी-
ये राष्ट्र, भोग की वस्तु है
या, जीवन है आराधन है-

आज की परस्थितियों का सही आकलन करता एक सुंदर गीत, सुंदर भाषा और खूबसूरत शब्दावली से सुसज्जित.

बधाई.