रविवार, 1 जुलाई 2012

अर्श से फर्श तक

थोडा    ही   रह   गया   है ,
ईमान   ,     बेच      डालो -
अब    काम   का   नहीं है
इन्सान      बेच       डालो -


बिकता  नहीं था  दाम  में ,
मामा      का    गाँव    था
उगायेंगे     दूजा       चाँद ,
आसमान     बेच     डालो-


सूरज     को    तलाश   है ,
किसी  आकाश-गंगा  की
मनमाने  हो  गए  हैं  ग्रह,
सम्मान  ,   बेच       डालो-


उगने     लगी    है   पौध ,
मकानों     ,मुडेर      पर ,
गुलशन की क्या जरुरत ,
बागवान   बेच       डालो -


किसने   कहा  की वतन
तेरा   है , पुरुखों  का  था ,
उज्र    क्या     है  तुमको ,
हिंदुस्तान    बेच    डालो-


लीभ इन रेलेसनशिप में  ,
,गुजर जाएगी कहीं रात ,
संस्कारों   ने   बनाया था ,
मकान      बेच      डालो-


कुत्ता    गोंद    में     आये ,
गुलजार     जिंदगी      है ,
बेटी  कोख में आये, काम
तमाम       कर       डालो-


जीकर   भी  जिंदगी   का ,
फलसफा   न  याद आया ,
गुमनाम     जिंदगी      है
नाम       बेच          डालो -


पिया      दूध   अमृत  सा ,
आँचल    की   छाँव   पाई ,
सहारा   दे   लाचार   हुयी ,
माँ     को     बेच      डालो -


कभी  गुरबत  में याद था
बाप        का         पौरुष ,
शमसीर    सोने    की  है
मिलेगा दाम  ,बेच  डालो -


आकाश    की    ऊँचाईयाँ
छूते          रहे        परिंदे,
हसरतों   के   उनके  पंख,
बेलाग        काट     डालो-


न    छोटा     हुआ   गगन ,
न    धरती    बड़ी      हुयी -
बढ़ती      गयी        हवस ,
शुचिता    को   बेच   डालो-


कौन      है     तुम्हारा   जो
जायेगा   साथ    घर  तक
महफ़िलों  तक साथ उनका,
रिश्तों    को     बेंच   डालो -


                            उदय वीर सिंह





























15 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया..........
आक्रोश भरा हुआ है रचना में....

सादर
अनु

रविकर ने कहा…

बढ़िया सरदार जी |
बधाई स्वीकारें |

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सन्नाट सपाट कटाक्ष..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

झकझोर देने वाली रचना ....


कुत्ता गोंद में आये ,
गुलजार जिंदगी है ,
बेटी कोख में आये, काम
तमाम कर डालो-

************

पिया दूध अमृत सा ,
आँचल की छाँव पाई ,
सहारा दे लाचार हुयी ,
माँ को बेच डालो -

मन के आक्रोश को अभिव्यक्त करती अच्छी प्रस्तुति

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

कौन है तुम्हारा जो
जायेगा साथ घर तक
महफ़िलों तक साथ उनका,
रिश्तों को बेंच डालो -

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ,,सुंदर रचना,,,,,

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,

M VERMA ने कहा…

बहुत खूबसूरती से विसंगतियों को उकेरा है आपने

संध्या शर्मा ने कहा…

मन में उठे आक्रोश की सटीक अभिव्यक्ति...सादर

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 02-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-928 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

रचना दीक्षित ने कहा…

कुत्ता गोंद में आये ,
गुलजार जिंदगी है ,
बेटी कोख में आये, काम
तमाम कर डालो-

मन में उपजे आक्रोश का प्रहार ऐसा ही होता है.

बहुत सुंदर रचना.

कमल कुमार सिंह (नारद ) ने कहा…

बहुत सुन्दर

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

आपकी रचना ने सचमुच ही झकझोर कर रख दिया.

छाया इस संसार में बस उपभोक्तावाद
रुपये खर्चें क्रय करें,अब तो आशीर्वाद
अब तो आशीर्वाद,चाँद पर प्लॉट खरीदें
बिकने को तैयार खड़ी हैं आस उम्मीदें
जल भूमि आकाश हवा अरु अग्नि बिकती
कुत्ते पायें गोद बिटिया रही सिसकती ||

amrendra "amar" ने कहा…

behtreen ojasvi rachna ke lioye badhai sweekar karen

Maheshwari kaneri ने कहा…

वाह: झकझोर देने वाली सुन्दर सटीक रचना ...

virendra sharma ने कहा…

परिवेश प्रधान बहुत ही उच्च कोटि की रचना है आपकी .हमारे वक्त से रु -बा -रु .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

ईमान तो बिक गया बाकी बचा न कोय,
खरीदन वाला चाहिए,जा के हिम्मत होय|

जाके हिम्मत होय,रिश्तों को बेच रहे है,
बिक रही है बेटियाँ, दहेज हम दे रहे है!

संस्कार बिक गया गर, बिक जायेगी नारी,
फिर क्या बचा,आजायेगी हिन्दुस्तान बारी!

चर्चा मंच में देखे,

MY RECENT POST...:चाय....