थोडा ही रह गया है ,
ईमान , बेच डालो -
अब काम का नहीं है
इन्सान बेच डालो -
बिकता नहीं था दाम में ,
मामा का गाँव था
उगायेंगे दूजा चाँद ,
आसमान बेच डालो-
सूरज को तलाश है ,
किसी आकाश-गंगा की
मनमाने हो गए हैं ग्रह,
सम्मान , बेच डालो-
उगने लगी है पौध ,
मकानों ,मुडेर पर ,
गुलशन की क्या जरुरत ,
बागवान बेच डालो -
किसने कहा की वतन
तेरा है , पुरुखों का था ,
उज्र क्या है तुमको ,
हिंदुस्तान बेच डालो-
लीभ इन रेलेसनशिप में ,
,गुजर जाएगी कहीं रात ,
संस्कारों ने बनाया था ,
मकान बेच डालो-
कुत्ता गोंद में आये ,
गुलजार जिंदगी है ,
बेटी कोख में आये, काम
तमाम कर डालो-
जीकर भी जिंदगी का ,
फलसफा न याद आया ,
गुमनाम जिंदगी है
नाम बेच डालो -
पिया दूध अमृत सा ,
आँचल की छाँव पाई ,
सहारा दे लाचार हुयी ,
माँ को बेच डालो -
कभी गुरबत में याद था
बाप का पौरुष ,
शमसीर सोने की है
मिलेगा दाम ,बेच डालो -
आकाश की ऊँचाईयाँ
छूते रहे परिंदे,
हसरतों के उनके पंख,
बेलाग काट डालो-
न छोटा हुआ गगन ,
न धरती बड़ी हुयी -
बढ़ती गयी हवस ,
शुचिता को बेच डालो-
कौन है तुम्हारा जो
जायेगा साथ घर तक
महफ़िलों तक साथ उनका,
रिश्तों को बेंच डालो -
उदय वीर सिंह
ईमान , बेच डालो -
अब काम का नहीं है
इन्सान बेच डालो -
बिकता नहीं था दाम में ,
मामा का गाँव था
उगायेंगे दूजा चाँद ,
आसमान बेच डालो-
सूरज को तलाश है ,
किसी आकाश-गंगा की
मनमाने हो गए हैं ग्रह,
सम्मान , बेच डालो-
उगने लगी है पौध ,
मकानों ,मुडेर पर ,
गुलशन की क्या जरुरत ,
बागवान बेच डालो -
किसने कहा की वतन
तेरा है , पुरुखों का था ,
उज्र क्या है तुमको ,
हिंदुस्तान बेच डालो-
लीभ इन रेलेसनशिप में ,
,गुजर जाएगी कहीं रात ,
संस्कारों ने बनाया था ,
मकान बेच डालो-
कुत्ता गोंद में आये ,
गुलजार जिंदगी है ,
बेटी कोख में आये, काम
तमाम कर डालो-
जीकर भी जिंदगी का ,
फलसफा न याद आया ,
गुमनाम जिंदगी है
नाम बेच डालो -
पिया दूध अमृत सा ,
आँचल की छाँव पाई ,
सहारा दे लाचार हुयी ,
माँ को बेच डालो -
कभी गुरबत में याद था
बाप का पौरुष ,
शमसीर सोने की है
मिलेगा दाम ,बेच डालो -
आकाश की ऊँचाईयाँ
छूते रहे परिंदे,
हसरतों के उनके पंख,
बेलाग काट डालो-
न छोटा हुआ गगन ,
न धरती बड़ी हुयी -
बढ़ती गयी हवस ,
शुचिता को बेच डालो-
कौन है तुम्हारा जो
जायेगा साथ घर तक
महफ़िलों तक साथ उनका,
रिश्तों को बेंच डालो -
उदय वीर सिंह
15 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया..........
आक्रोश भरा हुआ है रचना में....
सादर
अनु
बढ़िया सरदार जी |
बधाई स्वीकारें |
सन्नाट सपाट कटाक्ष..
झकझोर देने वाली रचना ....
कुत्ता गोंद में आये ,
गुलजार जिंदगी है ,
बेटी कोख में आये, काम
तमाम कर डालो-
************
पिया दूध अमृत सा ,
आँचल की छाँव पाई ,
सहारा दे लाचार हुयी ,
माँ को बेच डालो -
मन के आक्रोश को अभिव्यक्त करती अच्छी प्रस्तुति
कौन है तुम्हारा जो
जायेगा साथ घर तक
महफ़िलों तक साथ उनका,
रिश्तों को बेंच डालो -
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ,,सुंदर रचना,,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
बहुत खूबसूरती से विसंगतियों को उकेरा है आपने
मन में उठे आक्रोश की सटीक अभिव्यक्ति...सादर
क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 02-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-928 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
कुत्ता गोंद में आये ,
गुलजार जिंदगी है ,
बेटी कोख में आये, काम
तमाम कर डालो-
मन में उपजे आक्रोश का प्रहार ऐसा ही होता है.
बहुत सुंदर रचना.
बहुत सुन्दर
आपकी रचना ने सचमुच ही झकझोर कर रख दिया.
छाया इस संसार में बस उपभोक्तावाद
रुपये खर्चें क्रय करें,अब तो आशीर्वाद
अब तो आशीर्वाद,चाँद पर प्लॉट खरीदें
बिकने को तैयार खड़ी हैं आस उम्मीदें
जल भूमि आकाश हवा अरु अग्नि बिकती
कुत्ते पायें गोद बिटिया रही सिसकती ||
behtreen ojasvi rachna ke lioye badhai sweekar karen
वाह: झकझोर देने वाली सुन्दर सटीक रचना ...
परिवेश प्रधान बहुत ही उच्च कोटि की रचना है आपकी .हमारे वक्त से रु -बा -रु .
ईमान तो बिक गया बाकी बचा न कोय,
खरीदन वाला चाहिए,जा के हिम्मत होय|
जाके हिम्मत होय,रिश्तों को बेच रहे है,
बिक रही है बेटियाँ, दहेज हम दे रहे है!
संस्कार बिक गया गर, बिक जायेगी नारी,
फिर क्या बचा,आजायेगी हिन्दुस्तान बारी!
चर्चा मंच में देखे,
MY RECENT POST...:चाय....
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