पथ से जन-पथ ,
राज-पथ तक की
यात्रा ,
विजेता की तरह हो गयी .....
कितनी घटनाएँ ,दुर्घटनाएं ,
उत्पन्न की ,
निस्तारित की ... /
उखाड़े ,दफनाये गए
गैर- जरुरी मसले ..
छिपाए खंजर ,
खंजर के घाव, पापों के अम्बार,
रचे षडयंत्र , कुटिलता ,कूटनीति ,
घात- प्रतिघात /
"प्यार और जंग " में सब कुछ जायज का भाव,
लाशों के ढेर ,
भावनावों के ढूह ,
बिलबिलाती मानवता,
की छाती पर,
दंभ से , ओढ़े शालीनता की
चादर .....
फहरा रहा है ,मुस्कराते हुए ,
ध्वज !
विजेता का ,
राज-पथ ,
पर .....
उदय वीर सिंह
02 /07 /2012 .
6 टिप्पणियां:
वाह...
गहन रचना
अनु
पता नहीं कितने ऐसे ही दृश्यों को पचाने का क्रम है राजपथ..
सटीक कटाक्ष करती सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर , बढ़िया ..
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ जीवन के रंग संग कुछ तूफ़ां, बेचैन हवाएं ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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विचारोत्तेजक रचना। इस तरह का गर्व अधिक दिन तक टिकता नहीं।
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