गुरुवार, 5 जुलाई 2012

मेरा प्रणाम ..

मेरा प्रणाम
              कह   देना ......-


जल     गए      हैं   पांव ,   अग्नि    -    पथ    पर
चलते   -   चलते  ,   न      पाई      कहीं      छाँव
             कह   देना .......


मित्र-   पथ    में  , न   मिला   साथ   अपनों   का ,
शत्रु -  पथ    की   वीथियों    में   हो   गयी   शाम ...
             कह  देना ....

दीप जले ,परवाने आतुर मिटने को ड्योढीयों पर 
प्रतीक्षा नहीं  सूरज की,  डराता   नहीं  तापमान ,
             कह    देना .......


निकले   आंसू ,  भरोषा    भी    साथ   बह    गया  ,
प्रछन्नता घन की तिरोहित  रह गया आसमान 
             कह   देना .....

विपन्नता है क्यों ईतनी विशालता के धरातल में ,
फूलों के  साथ  ही  आता  है ,काँटों  का   भी नाम,
            कह  देना ..... 


वेदना के अंशुमान को  मिलती  नहीं  छाँव  कहीं,
बोई है बेल आधार बनने को,स्नेह  जिसका नाम  ,
             कह देना ...... 




                                                       उदय वीर सिंह 
  







12 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति..

सादर
अनु

रविकर ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति |
शुभकामनायें ||

Anupama Tripathi ने कहा…

फूलों के साथ ही आता है ,काँटों का भी नाम,
कह देना .....

गहन और बहुर सुंदर अभिव्यक्ति ...उत्कृष्ट रचना ..आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े ही सुगढ़ भाव से कहा है आपने..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वेदना के अंशुमान को मिलती नहीं छाँव कहीं,
बोई है बेल आधार बनने को,स्नेह जिसका नाम ,
कह देना ......

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर रचना,,,,

MY RECENT POST...:चाय....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

sundar bhavabhivykti

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!
शेअर करने के लिए आभार!

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

इतने सुंदर भाव से कहा है
क्यों नहीं कहेंगे जरूर कह देंगे !

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

utkrisht lekhan ek behtareen udaahran hai ye rachna.

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बहुत पसंद आई

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब ...