जब गुजरे तंग गलियों से ,
शराफत याद आती है-
पनाहे - दर - रकीबा में
हिफाजत याद आती है -
चमन का, कर लिया सौदा
शहादत याद आती है -
बाद जाने के, मुर्शद के
इनायत याद आती है -
जहालत आ गयी पहलू
इबादत याद आती है -
खुदा के नेक बन्दों से ,
अदावत याद आती है -
शर्मिंदा हैं ,जिंदगी किसी की न हुई ,
हम समझ बैठे उसे अपना, एतबार में -
जिंदगी चार दिन की है ,
कहावत याद आती है -
उदय वीर सिंह .
शराफत याद आती है-
पनाहे - दर - रकीबा में
हिफाजत याद आती है -
चमन का, कर लिया सौदा
शहादत याद आती है -
बाद जाने के, मुर्शद के
इनायत याद आती है -
जहालत आ गयी पहलू
इबादत याद आती है -
खुदा के नेक बन्दों से ,
अदावत याद आती है -
शर्मिंदा हैं ,जिंदगी किसी की न हुई ,
हम समझ बैठे उसे अपना, एतबार में -
जिंदगी चार दिन की है ,
कहावत याद आती है -
उदय वीर सिंह .
12 टिप्पणियां:
बेहद अच्छा लिखा है बधाई
बहुत खूब..
जिंदगी चार दिन की है ,
कहावत याद आती है -
यही चार दिन जिंदगी है... सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर......
सादर
अनु
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
चमन का, कर लिया सौदा
शहादत याद आती है
वाह! क्या कहने..बढ़िया शेर है.
गहरे भाव लिए
बहुत बेहतरीन रचना...
:-)
ज़िंदगी चार दिन की कहावत याद आती है-बहुत खूब
ज़िंदगी चार दिन की कहावत याद आती है-बहुत खूब
’ज़िंदगी चार दिन की
कहावत याद आती ह’
सुंदर.
भावपूर्ण रचना....बधाई!
बाद जाने के, मुर्शद के
इनायत याद आती है -
जहालत आ गयी पहलू
इबादत याद आती है -
बेहद सुंदर गज़ल ।
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