शनिवार, 14 जुलाई 2012

अक्स दर अक्स

जब  गुजरे  तंग  गलियों से ,
शराफत    याद     आती  है-


पनाहे  - दर  -  रकीबा    में
हिफाजत    याद   आती  है -


चमन का, कर लिया सौदा 
शहादत     याद     आती  है -


बाद    जाने   के,  मुर्शद  के
इनायत    याद    आती   है -


जहालत    आ   गयी  पहलू
इबादत      याद     आती  है -


खुदा    के   नेक   बन्दों  से ,
अदावत     याद    आती  है -


शर्मिंदा हैं ,जिंदगी  किसी  की   न  हुई ,
हम समझ बैठे उसे अपना, एतबार में -


जिंदगी  चार दिन  की   है ,
कहावत    याद    आती है -


                                 उदय वीर सिंह .

12 टिप्‍पणियां:

mai... ratnakar ने कहा…

बेहद अच्छा लिखा है बधाई

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब..

संध्या शर्मा ने कहा…

जिंदगी चार दिन की है ,
कहावत याद आती है -
यही चार दिन जिंदगी है... सुन्दर अभिव्यक्ति

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर......

सादर
अनु

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

Alpana Verma ने कहा…

चमन का, कर लिया सौदा
शहादत याद आती है

वाह! क्या कहने..बढ़िया शेर है.

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

गहरे भाव लिए
बहुत बेहतरीन रचना...
:-)

मन के - मनके ने कहा…

ज़िंदगी चार दिन की कहावत याद आती है-बहुत खूब

मन के - मनके ने कहा…

ज़िंदगी चार दिन की कहावत याद आती है-बहुत खूब

मन के - मनके ने कहा…

’ज़िंदगी चार दिन की
कहावत याद आती ह’
सुंदर.

devendra gautam ने कहा…

भावपूर्ण रचना....बधाई!

Asha Joglekar ने कहा…


बाद जाने के, मुर्शद के
इनायत याद आती है -


जहालत आ गयी पहलू
इबादत याद आती है -


बेहद सुंदर गज़ल ।