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देव भूमि ,
आर्यावर्त ,
देवता वास करते हैं ,
अर्थतः
उपासना स्वरूपा,
सर्वशक्तिसमन्विता ,
आर्या,यहाँ पूजी जाती हैं ...../
वस्तुतः
दैन्यता में .....
आशा ,शक्ति, वीरांगना शत्रु -मर्दिनी ,
बन गयी पुरुष छद्म की,
शिकार, -
आचार में भोग ,
विजेता की शान ,
अन्तः पुर का रत्न ,
व्यापार में विनिमय ,
जीत में उपहार...
कुटुंब की सेविका ,
प्रतिबंधों का पर्याय
पंचायतों का प्रिय विषय,
प्रतिष्ठा की धवल चादर ......./
ग्रंथों में देवी ,
कर्म से दासी ,......
देश -प्रदेश .शहर ,गाँव ,
देवालय ,शिक्षालय ही नहीं
अपना घर ,आँगन !
बता दो मुझे ,
कोई ठौर ....
जहाँ सुरक्षित है ...
आर्या , देवी,
जिसे पूजने का
प्रहसन
होता
है...............
उदय वीर सिंह
7 टिप्पणियां:
बहुत खूब !
सहमत हूँ आपसे !
बहुत सुन्दर....
कई बार पढ़ा तब मर्म समझ में आया कविता का...
सादर
अनु
वाह ... बहुत ही बढिया
कल 18/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''
भावमय बेहतरीन प्रस्तुति,,,,,बधाई
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
सुंदर प्रस्तुति ..
ग्रंथों में देवी कर्म से दासी ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
विकार विस्तार ले बिखर रहा है, कोई सम्हालो।
बहुत ही बढ़िया सर!
सादर
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