शनिवार, 15 सितंबर 2012

सूरज को क्या रौशनी दे---


इतनी  दौलत  में  ताकत  नहीं है ,
नूर    को    मोल   कोई     ख़रीदे -
इतना मालिक  का रुतबा  बड़ा है,
कोई  सूरज  को  क्या  रौशनी दे-

बा -  अदब  इल्म   का शुक्रिया है,
आगे   हर  दौर  में , दुनियां पीछे -
मुन्तजिर   हैं ज़माने   की  आँखे-
ख्वाब  उल्फत   का  कोई मुझे दे

जर्रा -   जर्रा    हुनर   का   नमूना  ,
शक्ल मिलती   न  एक   दुसरे से ,
संगदिल  को   भी  दिल दे दिया है,
हुश्न   को    शायरी      के   सलीके-

मेरी    आँखों   में  तेरा  शहर   हो
जब   भी   देखे, नजर भर के देखे-
चले जब कदम, हो उधर तेरा दर,
चाहे    ठुकराए   या     दात    देदे -

                                  उदय वीर सिंह







6 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

bahut khoobsoorat shayari ...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया....

सादर
अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन, मन को छूती हुयी..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

लोकेश सिंह ने कहा…

बहुत उम्दा और खुबसूरत सूफियाना मिजाज लिए रचना के लए साधुवाद

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

इतनी दौलत में ताकत नहीं है ,
नूर को मोल कोई ख़रीदे -
इतना मालिक का रुतबा बड़ा है,
कोई सूरज को क्या रौशनी दे-


गहन अनुभूतियों और दर्शन से परिपूर्ण रचना....