पढ़ रहा है मंत्र , कोई
यवनिका के पार्श्व में
झर रहे हैं, पात - पीत ,
फिर खिलेंगें बाग - वन-नैराश्य नहीं आनंद हो
खिल उठे क्षितिज -गगन ,
यश - भारती का गान हो ,
उगे पुनः सवित , नवल-
दैन्यता- विहीन,स्वर्ण काल
का हो पुनरागमन-
जल उठे , प्रकोप छद्म
दमित हो विभीषिका,
संवेदना का मान - पियूष,
पी सके वो धीरता-
लिख सकें वह शब्द- सर ,
भेद सके अंतःकरण-
ज्वाल उर दहका कभी,
गढ़ सकें अमर स्तम्भ
पथ- प्रकाश ,प्रज्वलित रहे ,
हो गंतव्य से सुखद मिलन -
बदल सकें हत -भाग्य को ,
आत्मसात हो नवल सृजन-
शक्ति- कुण्ड से निगमित हुई,
प्रज्वलित रहे शिखा ,
समिधा , प्रतिदान अर्पित
सौभाग्य से जीवन मिला-
मनुष्यता ढले, आकार ले दया
करुना,क्षमा स्नेह से सजे सदन-
उदय वीर सिंह
12 टिप्पणियां:
करुणा स्नेह क्षमा से सजे सदन !
ऐसे मंत्र तो हर घर में पढ़े जाने चाहिए !
बेहतरीन !
मान के चलिये, मंत्र अपना प्रभाव डालेंगे, जनमानस में ऊर्जा का संचार अवश्य होगा।
बदल सकें हत -भाग्य को ,
आत्मसात हो नवल सृजन-
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन ...बहुत बधाई ....
ध्वन्यात्मकता लिए हुए सुन्दर रचना!
वाह वाह ,,,,,उदयवीर जी,सार्थक सृजन के बधाई,,
बदल सकें हत -भाग्य को ,
आत्मसात हो नवल सृजन-
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नैराश्य नहीं आनंद हो
खिल उठे क्षितिज -गगन ,
यश - भारती का गान हो ,
उगे पुनः सवित , नवल-
दैन्यता- विहीन,स्वर्ण काल
का हो पुनरागमन-
बहुत सुन्दर भाव
बहुत खूबसूरत रचना !
bahut badhiya shodon ka samagam...dhnywad kabhi samay mile to mere blog http://pankajkrsah.blogspot.com pe padharen swagat hai
कितने खूबसूरत शब्द और भावों का ताना बना..
utkrisht prastuti.
बहुत प्रेरक और सुन्दर अभिव्यक्ति..
प्रेरक अभिव्यक्ति!
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