शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

पत्थर के पेड़ ....





दरख़्त की 

सूखती डाल,
कह रही है .....
पगली मत बना नीड़
मेरी छाँव में 
कल आएगा लक्कड़हारा 
कर कुल्हाड़े का प्रहार 
काट ले जायेगा  ,
साथ में तुम्हें ,तेरे कवक 
जला मुझे ,भुन खायेगा l
काट चुका है पहले  ही जड़ों को ,
मेरे बृक्ष   की ...
जा बना कहीं पत्थर के पेड़ पर नीड़, 
जहाँ कुल्हाड़े 
टूट जाते हैं ..... 

                  - उदय  वीर सिंह .


5 टिप्‍पणियां:

travel ufo ने कहा…

पत्थर के पेड । वाह क्या रचना है

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह....
बेहद गहन अभिव्यक्ति...

सादर
अनु

Kailash Sharma ने कहा…

जा बना कहीं पत्थर के पेड़ पर नीड़,
जहाँ कुल्हाड़े
टूट जाते हैं .....

...बहुत खूब!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पेड़ कटने के पहले तक आशियाना बना के जीना सीख लें हम।

रचना दीक्षित ने कहा…

जा बना कहीं पत्थर के पेड़ पर नीड़,
जहाँ कुल्हाड़े
टूट जाते हैं .....

क्या बात कह डाली. बहुत खूब बहुत सुंदर.