तमस को मिटाने-
कहीं पर जले हैं, कही हैं जलाने,
आओ चलें हम, तमस को मिटाने-
दीया कहीं है , तो बाती नहीं है,
मानस में हलचल हृदय है उदासा ,
कैसे जले बिन अग्नि के बाती
बिना तेल के कितना दीया पियासा -
तत्व बिखरे पड़े हैं इधर के उधर
आओ चलें एक दीपक बनाने-
बुझता दीया जब हृदय जल रहा हो ,
हँसे जब हृदय तो दिवाली हो कायम,
गर्दिशों का साया, अमावस का साथी,
अँधेरा मिटे तो उजाला हो आँगन-
पनघट, बस्तियां व बसेरे प्रतीक्षित,
आओ चलें एक सूरज उगाने-
दीप को रौशनी की इजाजत मिले ,
तूफानी हौसलों से तूफान सर हो
क्षितिज का हर कोना उजारा उजारा
महलों में न कहीं रौशनी कैद हो -
दैन्यता ,हीनता ,वेदना के तिमिर को,
आओ चलें दीप - शिखा में जलाने-
-- उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,,,
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,
दीवाली का पर्व है, सबको बाँटों प्यार।
आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
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(¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
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बहुत सुंदर रचना ....
मैॆ अस्तित्व तम का मिटाने चला था..
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