मंगलवार, 13 नवंबर 2012

तमस को मिटाने-



तमस को मिटाने-

कहीं  पर  जले   हैं,  कही  हैं  जलाने,
आओ  चलें   हम, तमस को मिटाने-

दीया   कहीं    है , तो   बाती   नहीं  है,
मानस   में  हलचल  हृदय  है उदासा ,
कैसे   जले   बिन   अग्नि   के  बाती
बिना  तेल  के कितना दीया पियासा -

तत्व   बिखरे   पड़े   हैं   इधर के उधर
आओ     चलें    एक   दीपक   बनाने-

बुझता  दीया  जब  हृदय जल  रहा हो ,
हँसे  जब  हृदय तो दिवाली हो कायम,
गर्दिशों का  साया, अमावस  का साथी,
अँधेरा  मिटे   तो  उजाला   हो  आँगन-

पनघट, बस्तियां  व  बसेरे   प्रतीक्षित,
आओ    चलें     एक    सूरज    उगाने-

दीप  को   रौशनी  की  इजाजत  मिले ,
तूफानी   हौसलों   से   तूफान  सर  हो
क्षितिज  का  हर  कोना उजारा उजारा
महलों   में   न   कहीं  रौशनी   कैद हो -

दैन्यता ,हीनता  ,वेदना के  तिमिर  को,
आओ  चलें   दीप - शिखा   में   जलाने-

                                -- उदय वीर सिंह


 
 




4 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,,,
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

दीवाली का पर्व है, सबको बाँटों प्यार।
आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
--
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
(¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर रचना ....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मैॆ अस्तित्व तम का मिटाने चला था..