कदम हलचल मचाते हैं
जब अपने बुलाते हैं
नसीहत भूल जाती है ,
घर काँटों के जाते हैं -
न इलहाम की दौलत ,
नहीं आलिम के घर से हैं ,
तेरी खुशबू के कायल हैं ,
हम तेरे, पास आते हैं-
क्या रिश्ता है नहीं मालूम ,
नूरानी खुबसूरत हो,
हवा देती तेरी आहट
दीवाने झूम जाते हैं-
तेरी बाँहों में खुशियाँ है
तेरे आँगन में जन्नत है ,
इलाही पाक दामन में
हम आकर भूल जाते हैं-
अल्फाज हो खुदा के ,
सूरत मुहब्बत के ,
पैगाम हो अमन के
मसीहा तुमको बुलाते हैं -
हो दुनियां में राज तेरा
हम सिजदे में कहते हैं ,
तुम्हारी चाहतों में शायद
खुदा दुनियां बनाते हैं -
-- उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
सुंदर रचना
आज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
बहुत अच्छी रचना....
न इलहाम की दौलत ,
नहीं आलिम के घर से हैं ,
तेरी खुशबू के कायल हैं ,
हम तेरे, पास आते हैं-
लाजवाब....
अनु
तेरी बाँहों में खुशियाँ है
तेरे आँगन में जन्नत है ,
इलाही पाक दामन में
हम आकर भूल जाते हैं-
बहुत खूब उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये बधाई,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
शान्ति और समृद्धि हर ओर फैले..यही सबकी चाह हो।
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