शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

कातिल न रहे -


 कातिल  न  रहे -

यकीं   नहीं है  उन्हें   मेरे  गुनाहों   पर ,
मुझे    गम  है ,  हम   कातिल  न  रहे -

मुआफ   मुझे , कर    सको  तो   करो ,
मुझे गम है ,गुनाही से गाफिल न रहे-

जिगर बड़ा इतना छुप गया मेरा किया ,
मुझे गम है ,ख़ुशी  मेरी शामिल न रहे-

क्या   कहेगा  मुझे ,दीदार - ए - दर्पण ,
कभी   अजीज   थे , वाजिब    न   रहे-

ख्वाब  थी   किश्ती ,लहरों   का  शहर ,
अब   दरिया  न   रही , शाहिल  न रहे -

जिसने भी  लिखा  होगा,फैसला मेरा
शायद   मुहब्बत  से  वाकिफ़  न रहे -

                                    -  उदय वीर सिंह






4 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |
शुभकामनायें-

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लिखने वाले ने लिख डाले, मिलन के संग बिछोहे..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुन्दर नज्म ,,,बधाई

resent post : तड़प,,,

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर नज्म