हृदय के आँगन, नुपुर खनकते
उनके स्वर का स्नेह लिखना-
भरे नेत्र , आतुर झरने को
स्मृतियों के नेह लिखना-
हर कली का, ख्वाब खिलना ,
मधुपों का , मद गीत, सुन्दर ,
अप्रतिम प्रतिक , उपमा वांछित
मधुर भाव , रमणीक प्रवर-
भर आये ऑंखें सृजने जब,
भरे ह्रदय की पीर लिखना-
उर - कोष्ठ , निषेचित करते हैं ,
निश्छल भाव स्पंदन को ,
विपुल राशि , लावण्य माधुरी
अभिसरित रही अभिनन्दन को-
कर जाये व्यतिरेक विकल जब
विस्वास भरा आदेश लिखना-
छू रही हो , पवन कंटीली ,
चंदन - तन , अंतर्मन को
उच्च -प्राचीर निर्मित कर लेना
अशुभ ,त्याज्य , अतिरंजन को-
पीर पहाड़ सी , ढ़ो न सकेंगे,
झर-निर्झर की टोह रखना-
उदय वीर सिंह
6 टिप्पणियां:
वाह वाह ... बहुत सुन्दर पंक्तियाँ साँझा करने के लिए बहुत बहुत आभार उदय वीर सिंह जी
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
वाह वाह ... बहुत सुन्दर पंक्तियाँ साँझा करने के लिए बहुत बहुत आभार उदय वीर सिंह जी
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स्मृतियों में नेह भरा हो,
शेष रहें पर मन न गहें।
पीर पहाड़ सी , ढ़ो न सकेंगे,
झर-निर्झर की टोह रखना..
बहुत ही मनमोहक रचना , आभार
बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति ,,,,,एक अच्छी रचना,,,,
RECENT POST:..........सागर
बहुत सुन्दर इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए बधाई
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