गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

मलाल है जिंदगी से ,.....


क्यों     मिलता   है    ऐसा    हाल,
मलाल        है ,     जिंदगी       से -
क्या    पहनने ,  ओढ़ने   को  सिर्फ
दर्द   ही   हैं,  सवाल  है  जिंदगी से-
भूख ,   कचरों   में  ढूंढ़  थक  गयी
मासूमियत  भी  लाचार जिंदगी से -
कभी   दे  सको  तो  इस्तहार देना
कितना  है इनको प्यार जिंदगी से -
धर्म, संसद, कानून का कितना रह
गया    है ,  सरोकार   जिंदगी   से  -
मिला किसी को नूर,दौलत माँ-बाप
किसका है इनको इंतजार ..... ?
जिंदगी  से-...... |

                         - उदय वीर  सिंह  

7 टिप्‍पणियां:

मेरे भाव ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति !

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा 14/12/12,कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन को कब मान मिलेगा..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

शब्द दिए हैं पीर को, मर्म छू रहे भाव
तूफानों से किस तरह, लड़ पाएगी नाव ||

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भूख , कचरों में ढूंढ़ थक गयी
मासूमियत भी लाचार जिंदगी से -

कभी दे सको तो इस्तहार देना
कितना है इनको प्यार जिंदगी से -

सामाजिक सरोकार से जुड़ी अच्छी रचना ... सोचने पर विवश करती हुई

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बेहद मार्मिक रचना..