सिमटती
गयीं दूरियां ,..
फासले बढ़ते गए,
दिलों के ....
शीशा चिपका है संगदिल
दीवारों से, दिल भरोसे से..|
टूटे कांच ,बदलने का रिवाज
कायम ,दिल भी बदल जाते...
काश !
शीशे की तरह .....|
पिघल जाते मोम की तरह,
कर लेते हजार बहाने
न टूटने के ,...|
क्यों जम जाते हैं,किसी भी
मौसम में
रख कर यादों को |
अंतहीन खामोशियों को ओढ़
बिना दस्तक ,आवाज
दे जाते अतल गहराईयाँ
दर्द की ,हमदर्द थे ,
बे -दर्द होकर ........|
उदय वीर सिंह .
5 टिप्पणियां:
भाई उदयवीर जी सतश्री अकाल |बहुत अच्छी कविता |
गहरे उतरता शब्दों का व्यापार।
सुन्दर कविता,,,,
recent post: वजूद,
गहन अभिव्यक्ति
बढ़िया अभिव्यक्ति भाव और अर्थ की खूब सूरत व्यंजना बिम्ब मनोहर .
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