शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

लेजा अपना चाँद-


लेजा अपना चाँद, 
दे जा मेरा अँधेरा .....
कम से कम नजर
नहीं आएगा  वो चेहरा ...
जो हमसाया 
मेरीदुनियां का 
सरमाया था...|  
जिसमें लगे दाग
मैं ही नहीं ,
देख रही है पूरी कायनात ,
बयान करते हैं 
उसकी बेशर्मी बेवफाई ,दरिंदगी 
आखिर तो वो,
कहीं से पाया था ......|  
दे जा मेरे ख्वाब , 
तोड़ने के लिए, 
जिसे मैंने सजाया था ,
जो कभी  मेरा सरमाया था ....|

                            -उदय वीर सिंह 

4 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

सुन्दर भाव....अच्छी रचना...
सादर

अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रात पूरी घनी और काली है, कोई दाग नहीं।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

दे जा मेरे ख्वाब ,
तोड़ने के लिए,
जिसे मैंने सजाया था ,
जो कभी मेरा सरमाया था,,,

बहुत ही सुंदर भावों की प्रस्तुति,,,,
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recent post : नववर्ष की बधाई

अरुन अनन्त ने कहा…

सुन्दर भावों को समेटे खूबसूरत प्रस्तुति बधाई