रविवार, 30 दिसंबर 2012

हम रहे इन्सान कितना......

हम   रहे   इन्सान    कितना,
कह   नहीं  सकते-
गिर सकता है इन्सान कितना,
कह  नहीं सकते-
मिट  गयी  है  लक्षमण   रेखा
कायम  कबूल थी
बिक सकता है ईमान कितना,
कह नहीं सकते -
एक  नारी  ने माँगा  समाज से
प्यार  की दौलत
मिला है  उसको मान कितना
कह  नहीं  सकते-
खो    गयी   जमीं    जिसे   वो
दहलीज    कह  रही   थी ,
पाया    है   आसमान  कितना,
कह  नहीं    सकते-
भरोषा    था   उदय   आँखों में,
समंदर जितना ,
करता  है  जां  निसार  कितना
कह    नहीं    सकते -

                            - उदय वीर सिंह






4 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

जो दुनिया स्वर्ग भी हो सकती है, वही नर्क हुई जा रही है - अफसोस!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,

चिरनिद्रा में सोकर खुद,आज बन गई कहानी,
जाते-जाते जगा गई,बेकार नही जायगी कुर्बानी,,

recent post : नववर्ष की बधाई

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

अलविदा, मैं खुश हूँ कि तुम अब ऐसी जगह जा रही हो जहाँ शायद कोई किसी का बलात्कार तो नहीं करता.....(http://nayabasera.blogspot.in/

अति दर्द के बाद एक पवित्र यात्रा को अग्रसर हो तुम दामिनी ...खुश रहो यहाँ से जाने के बाद :(

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ भी कहना कठिन हो गया,
यूँ अब रहना कठिन हो गया,
किन कर्मों पर गर्व करें हम,
किन कर्मों पर हर्ष करें हम,
नित नित जब तटबन्ध ढहें जब,
कुछ भी सहना कठिन हो गया।