शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

मोड़ भी हैं बहुत



जीवन की चादर लगे दाग कितने
लगाये किसी ने ,धुलाये किसी ने ,

***
दर्द से आशिकी के फ़साने बहुत हैं ,
छुपाये किसी ने ,दिखाए किसी ने -

***
अँधेरी  रातें , अंधेरों   में   दीपक ,
जलाये किसी ने ,बुझाये  किसी ने-

***
मोड़ भी हैं  बहुत ,रास्ते भी बहुत ,
मंजिल  कहाँ   है बताये  किसी ने-

***
राहों  में  अनजान कितने  पड़े  थे ,
गिराए  किसी  ने, उठाये किसी ने-

***

बागों  में  सुन्दर खिले फूल कितने,
सजाये  किसी  ने  उगाये  किसी ने-

 ***


                                उदय वीर सिंह
                                  07/12/2012

4 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत प्यारी गज़ल....
सीधी सरल...दिल को छूती...

सादर
अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!

ਸਫ਼ਰ ਸਾਂਝ ने कहा…

अँधेरी रातें , अंधेरों में दीपक ,
जलाये किसी ने ,बुझाये किसी ने-

अदभुत भाव सुंदर प्रस्तुति.