गुरु अर्जन देव जी [ 5th गुरु ]
{ प्रथम शहीद गुरु }
यूँ तो समूची सिक्खी ही शहादत व आत्म निरीक्षण का दतावेज है ,उसके अंगों पर जब हम दृष्टिपात करते हैं , रहस्य, रोमांच और अविस्वसनिय क्षितिज के दर्शन होते हैं / सिक्खी के विषद स्वरुप की व्याख्या की सामर्थ्य तो मुझमें नहीं है ,परश्रद्धांजलि स्वरुप पांचवें गुरु अर्जन देव जी की शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर हृदय से अपने श्रध्दा सुमन अर्पित कर रहा हूँ ,इस विनम्र अरदास के साथ की , सच्चे पातशाह ! मुझे इतनी सामर्थ्य देना की अपने हर जन्म में, आप जी दे बनाये रस्ते पर ,चल तेरी शान में ,अपने को कुर्बान कर सकूँ /
पांचवीं पातशाही को आप जी ने सुशोभित किया / 15 अप्रैल 1563 को श्री गोविंदवाल साहब में ,माता भानी जी, की कोख़ से गुरु रामदास जी के तीसरे पुत्र के रूप में पृथ्वी पर पदार्पण / माता गंगा जी केसाथ चार लावे ले दुनियावी जीवन के सरोकारों को सफलीभूत किया / एक पुत्र गुरु हरगोबिन्द साहिब जी के रूप में पुत्र-रत्न की प्राप्ति / 25 वर्ष की आयु में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए /
आदि -ग्रंथ साहिब जी का संकलन आप जी द्वारा हुआ / 2218 श्लोकों में,30 मधुर रागों के श्रीमुख द्वारा वाणी दिग -दिगंत में पूज्य हुई / वाणी जीवन का आधार बनी / जिसमें गुरुओं ,पीर ,फकीरों ,भक्तों जो विभिन्न धर्मों जातियों ,सम्प्रदायों से थे ,सामान रूप से आदर और प्रतिष्ठा प्राप्त है /
आपजी ने हरमंदिर साहिब [तख्त ] अमृतसर ,का निर्माण किया / विशिष्टता यह कि एक मुसलमान ,हजरत मियां मीर ,के हाथों अकाल -तखत " हरमंदिर साहिब जी " की नींव गुरु जीने रखवायी / जो आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है / इसमें बिना भेद हर किसी व्यक्ति का मंगल स्वागत है /जाति लिंग ,रंग ,धर्म का कोई स्थान नहीं है / मनुष्यता ,समानता , सद्ज्ञान का सर्वोच्च आदर है / गुरु व सिक्खी के दरवाजे मानव -मात्र के लिए सदैव खुले हुए हैं /
आदि-ग्रन्थ साहिब जी का श्री हरमंदिर साहिब में औपचारिक स्थापना की / सिक्ख धर्म को अपनी ,लिपि अपनी भाषा , और सम्यक लिखित दर्शन प्रदान किया , जिसके लिए क़यामत तक सिक्खी ऋणी है /
आपने मनुष्यता को सारगर्भित रूप ,दिया अनेक नगर ,सरोवर , कुष्ठ- आश्रम ,सेवा-आश्रम बनाये / लाहौर में पड़े अकाल में आपजी ने बेमिसाल सेवा भाव प्रदान किया / आपजी दे " मनसा, वाचा ,कर्मणा ",के अनन्य भाव से प्रभावित हो ,जन -सैलाब ,सिक्खी धारण करने लगा / समकालीन शासकों ,धर्माचार्यों को सीधी समृद्ध ,सहिष्णु वाणी ,रास नहीं आई / जहाँगीर पुत्र अकबर को ,नक्सबंदी समुदाय ,व कुछ कट्टर असहिष्णु हिन्दू भी ,आपजी दे खिलाफ , गोलबंदी कर, कान भरे / क्योकि सिक्खी ,अपने मनुष्यता ,के धर्म को बखूबी निभा रही थी / धार्मिक पतन को बांध बन कर रोक रही थी / शहजादा खुसरो पुत्र जहाँगीर भी ,आप जी दी शिक्षा ,वाणी का प्रशंसक था / जो जहाँगीर व उसके जमात के लोगों को पसंद नहीं था /
आप जी दी बढती लोकप्रियता ,सिक्खी की सुगंध वतावरन में कस्तूरी की तरह फ़ैल रही थी ,जो मुस्लिम शासकों व अन्य को सहन नहीं था / अब मौके की तलाश थी ,सिक्खी विरोधियों ने अपने धर्मों का शत्रु और शहजादा खुसरो {जो अब जहाँगीर के खिलाफ बागी बन गया था } का आश्रयदाता बना कर आपजी दे खिलाफ भड़काया / आपजी नू शत्रु घोषित कर दिया गया /
बादशाह का फरमान आया - की इस्लाम या मौत दोनों में से कोई एक कबुल करना होगा / आपजी ने इस्लाम काबुल करने से स्पष्ट मना कर दिया /
तमाम प्रलोभन ,भय ,दिए गए ,अंततः असीम यातना ,दुःख [ लाल गर्म तवे पर बिठाया गया ,सिर ऊपर से अत्यंत गर्म रेत डाला गया ,हाथ -पैर बांध नदी में डाला गया ] / पर धन्य -2परमात्मा के स्वरुप आप अडोल रहे / कोई शैतानी ताकत आपजी नू ,मुसलमान नहीं बना सकी / अंत में 30 मई 1606 को लाहौर में अकथ संत्रास दे शहीद कर दिया गया , सिख्खी नहीं छोड़ी ...
गुरु महाराज ने यह बात स्पष्ट कर दी - सिक्खी शहादत दा मार्ग है -
"जो तो प्रेम खेलन का चाओ ,सिर धर तली, गली मेरे आओ ,
इह मार्ग पैर धरिजे , सिस दिजै कांह न कीजै -"
गुरु अर्जन देव जी महाराज ,सिक्ख धर्म के पहले शहीद है ,उनके बाद आज तक यह परंपरा हमारे रगों में खून बनकर प्रवाहित है / और प्रवाहित रहे यही मेरी, सच्चे पातशाह के प्रति, सिक्खी के प्रति , सच्ची श्रद्धांजलि होगी , सच्चा वारिस कहलाने का हक़ प्राप्त होगा -
हुनर देना शहादत का ,रोशन रहे चमन मेरा ,
कट जाये झुकने से पहले , झुके तो तेरी राह में.....
" बोले सो हो निहाल ,सत श्री अकाल"
उदय वीर सिंह
24-05-2012