मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

निःशब्द हूँ , मां हूँ .....


माम !
मुझे इतनी सी, प्यार  से
एक बात बताना
कान में ....
क्यों करती हो
इतना प्यार ?
कोई इतना भी प्यारा
क्यों लगता है ....?
कोई इतना भी प्यार करता है क्या ?
शर्दियों में चादर ,
तूफान में दीवार ,
संकट में निहारिका ,
शून्यता  में इतना साहस कोई देता है क्या ? 
मेरी भूख ,प्यास ,मेरी राह,
सब क्यों पता है तुमको ,
मेरे अवसान का ख्याल ,
भी सहन नहीं तुम्हें,
द्रोही की छाया  तो दूर ,
आहट भी पसंद नहीं
कर देती हो न्योछावर सर्वस्व
अपना प्यार भी .....l
शब्दों में न बांध मुझे,
मेरे अंश !
निःशब्द हूँ
बस मां हूँ .....

                      -   उदय वीर सिंह

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

कानून.. जो गिर पड़ी है....



माननीय !
आपके निष्ठावान,
कड़क बचन ,
कानून, अपने हाथ में
न लें...!
कानून महफूज हाथों में है  l
निर्दोष ,मजलूम ,लाचार
भूखे, नंगे ,अधनंगे,आप की जद में हैं
अपराधी ,षड्यन्त्रकारी ,बलात्कारी ,
फरेबी, लुटेरे  देश, समाज- द्रोही ,
आपकी पकड़ से बाहर....
शामे महफ़िल के हमसफ़र हैं  l
लिख रहे हैं, आपकी  करेक्टर रिपोर्ट
जो ढीली है ....
नशे में या दहशत में आप इतने कि ,
पतलून गीली है l
कांपते हाथों से कानून,
गिर पड़ी  है......l
अजीब पसोपेश में हैं
आप उठाएंगे नहीं ,
हमें उठाने नहीं देंगे ......

             -  उदय वीर सिंह .








शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

पत्थर के पेड़ ....





दरख़्त की 

सूखती डाल,
कह रही है .....
पगली मत बना नीड़
मेरी छाँव में 
कल आएगा लक्कड़हारा 
कर कुल्हाड़े का प्रहार 
काट ले जायेगा  ,
साथ में तुम्हें ,तेरे कवक 
जला मुझे ,भुन खायेगा l
काट चुका है पहले  ही जड़ों को ,
मेरे बृक्ष   की ...
जा बना कहीं पत्थर के पेड़ पर नीड़, 
जहाँ कुल्हाड़े 
टूट जाते हैं ..... 

                  - उदय  वीर सिंह .


बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

राम -रावन विथियाँ हैं


मित्रों ! विजयादशमी  की अनंत मंगल कामनाएं l  पवित्र -ग्रन्थ  सद्दभाषित करते हैं" सत्यमेव जयते " जिसकी पुष्टि भी होती आई है l  जो कायम  रहे - 




राम ,  रावन ,  विथियाँ  हैं  
राम,      रावन       संहिता  
एक   सृजन   की   मीत है,
पाप   की    एक,   वाहिका-
***
एक  नदी है  पावनी , प्राण
-जल ,    झर  -   झर     बहे ,
मदिरा  भरी, एक  झील है,
हम ही हम ,निशिदिन कहे -

एक   मधुर -  रस , मंजरी 
एक   रुदन  की  मल्लिका-
****
एक सुनामी अंक ले अतृप्त
मानस     बिन   ठाँव    की,
एक    कलश   अमृत   भरे,
प्रतिदान   देती   नाम   की- 

एक   के  वन  पुष्प- पीयूष
एक    के     हिय    कंटिका-
****
न्याय  की  एक  पाठशाला ,
अन्याय  की   एक   मूल है,
एक जीवन  की,प्राण- वायु 
एक       वेदना     स्थूल   है-

एक    प्रज्ञा    का,  तख़्त है, 
एक    दुखों   की ,  शायिका-
****  
एक  है  पथ ,खून - लतफत  
एक   डगर   है,    प्रेम    की,
मानस एक अभिशप्त,वंचित 
गेह     है   एक,    नेह     की -

एक  अधर्म   की  पोषिका है 
धर्म     की   एक      रक्षिका- 

                       -  उदय वीर सिंह 

     
   

    

   
   

    

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

फ़ानी आप हैं



















फ़ानी आप हैं-

जिंदगी  का  सफ़र  ये  नया  तो  नहीं
दामन      पुराना,    नए      आप    हैं-

हर   हाल   में ,   हर   जगह   जिंदगी ,
ये  मसला   अलग  कि, कहाँ  आप हैं-

कब मेहरबान ,किससे  गाफिल हुयी,
आप  से  क्या  हई,  बा-ख़बर आप हैं-

उल्फत का दामन, इतना जर्जर हुआ
फिर भी जिद है कि पकडे हुए आप हैं -

फैसले   उसके    होते   रहे    अलहदे
जज्बा  इतना, मुतासिर  हुए  आप हैं -

कभी   आना   बताएँगे   तफसील से,
वो    ग़ालिब    रही , फ़ानी    आप  हैं-

दो  कदम  न चली इल्तजा जब  रही ,
अपने साये का संग,हमसफ़र आप हैं 


                                         -उदय वीर सिंह








गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

कोशिश हो रही है --


कोशिश हो रही है --

लोहे   के  चने   चबाने की
मनुष्य को ईश्वर बनाने की ,
नीर को ज्वाला बनाने  की ,
पहाड़  समतल  बनाने  की-

कोशिश हो रही है -
वतन को अपना बनाने की ,
रिश्तों  को समझ पाने की ,
इबारत   नए   ज़माने   की
संवेदना    भूल    जाने   की-
कोशिश हो रही है -

दही   से ,   दूध   पाने     की ,
हाथ   में  दही   ज़माने  की ,
बे-  जमीन  पौध उगाने की
जमीन   पर चाँद, लाने  की-
कोशिश हो रही है -

विज्ञान       का     दौर   है
इंसानियत भूल  जाने  की
दौर -ए-इश्क   का आलम
शराफत  नये  जमाने  की,
कोशिश हो रही है -

प्रदूषित हो  गयी  है फिजा,
निजात        पाने         की,
धरातल   शर्म  से   झुलसा
अनवरत निखार लाने  की-
कोशिश हो रही है-

कहने   में  जाता  क्या  है
एक  बृक्ष  हवा  में लगायें ,
खाली  पेट   भी  जिन्दा हैं
पेड़     में   पैसे उगाने  की,
कोशिश  हो  रही  है-

                                  -उदय  वीर सिंह





 


सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

इलहाम.... .






















मेरा   बेख़ौफ़   चेहरा   उन्हें 

मवाली     सा      लगता  है ,
नमस्कार  भी   मेरा    उन्हें                     
गाली        सा     लगता    है -

मुझे  दिया  रकीब  ने  नहीं,

ईश्वर    ने ,   मुकद्दर    मेरा,
मुझे     कोई    गिला    नहीं ,
उन्हें   खाली   सा  लगता है-


जज्बात में  यारो आईने ने

कहा, मुस्कराना  अच्छा है ,
मेरा   मुस्कराना   भी उन्हें ,                    
सवाली       सा    लगता  है-

कोशिश थीमेरी जलाने की

मशाल ,  रात    उजारी  हो,
मेरी   रात     का   मंजर ही  ,
उन्हें  दिवाली सा लगता है-

हमने  सिर्फ यही  कहा  था 

आँखों के बाद भी दिखता है ,
न   जाने  क्यों  मेरा बयान 
उन्हें  बवाली  सा  लगता है -

शुक्र  है उनके कूचे  में   मेरे 

अफसाने      ग़ालिब       हैं ,
वरना हर पोशीदा  इलहाम 
उन्हें  खयाली  सा लगता है - 

                  -    उदय वीर सिंह 



                 





शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

रफ़्तार देनी है -
























गिरे -बिखरे पत्थरों को समेट,
गंतव्य    को     राह    देनी  है -
अँधेरा कहीं  तिरोहित हो चले ,
हर  हाथों  में  मशाल   देनी है -
न टूट  सके आघातों से  ह्रदय ,
पत्थरों   की    दिवार  देनी  है-
भंवर सामने है,डूबने से पहले ,
नाव    को    पतवार   देनी   है-

****

हम  उजड़ने नहीं देंगे  गुलशन ,
गुलों      को     एतबार       देंगे,
अगर खून  से  रंग निखरता है ,
तो दानवीरों  की कतार देनी है-
कही मसला न जाये उत्सवों में ,
कदमों  को   ख़बरदार  देनी  है-
बागवान   कोई   मायूस  न  हो,
खुरपे के साथ ,तलवार  देनी है -

*****

यूँ  अफ़सोस कर  लेने  से मुकाम ,
कभी        हासिल     नहीं     होते ,
हौसले   बसते   हर   दिलों   में  हैं ,
महज    एक    आवाज    देनी   है-
सोते प्रतीक्षा में हैं दरिया बननेको,
कर चोट  गैंतियों की , धार देनी है-
तुम निभाओ ,कुछ  हम निभाएंगे,
थमे हुए पहियों को रफ्तार,देनी है-

                             उदय वीर सिंह
   

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

दरकने लगी जमीन ...



खाली चूल्हे ,
आग दिल में ,
पानी बिन गागर
तन रोगों की खान ,
कोलाहल मानस में ,
घर   शमशान  ,
आशक्ति, पलायन से
विरक्ति , सृजन से
संवेदना  से   दूरी,
नाउम्मीद होने लगे हैं ,
चेतना में थे,
अब बहकने लगे हैं ,
पीर शैलाब हो गयी है ,
वेदना में ,बहने लगे हैं ,
ले लाश कन्धों पर ,लाशों से
गुजरने लगे हैं लोग .....।
बुढा  हो गया है बचपन ,
यौवन से मुकर,दो जून की रोटी
भारी हो गयी है ,
पांव सरकने लगे चढाइयोंसे ...... ,
दरकने लगी जमीन ,
ख्वाब की खिलखिलाहट 
याद आयी  नहीं कि ,
रोने से भी 
वैर, रखने लगे हैं
लोग।

                              - उदय वीर सिंह




रविवार, 7 अक्तूबर 2012

खरा सौदागर


सुनता  ,
हृदय की पीर ,
याचना,करुण- क्रंदन 
विवसता ,संताप  ,
अभिशप्त जीवन-गाथा ,
वो शब्दकोष जो गढ़े गए  ,
निहितार्थ दमन ,षडयंत्र ,मर्दन के ..
फूंकता प्राण !
दिशाहीन, विक्षिप्त -जीवन ,
मनुष्यता की क्षत-विक्षत शरीरमें 
दे संवेदना आत्मबल ,
भरता हुकार ! 
तोड़ बंध,पाखंड ,अन्याय जुल्म का ..
ले ज्ञान का खंजर ,
ध्वस्त करता,
पाशविक परंपरा ,
झूठे दंभ ,अभिमान को ..../
लिए प्रज्ञा का यशस्वी आसमान,
अंशुमान ! 
कभी - कभी ,
गुरु नानक 
आता है ....
      
             -    उदय वीर सिंह   

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

ओ मेरे, मुसव्विर ....

ओ मेरे,
मुसव्विर !
बनाना एक आशियाना ,
मजबूत बुनियाद से ,
जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,
खिड़कियाँ हो ,
सामने खुला क्षितिज
लहराते उपवन,आती भीनी खुशुबू
भौंरे हों ,तितलियाँ हों,
स्मरण दिलाते, स्मृतियों में बसी,
तारीखों को ,
दीवारों पर टंगे कैलेण्डरहों 
अहसास ,अपनापन का 
वेदना  की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,
खुले प्रकोष्ठ,
झीने मखमली परदे ,
गुलाबी दीवारें ,
बजते साज 
ध्वनित होते,  प्रेम गीत ,
बहती जायें  तरंगें ....
गाँव ,शहर,वन-मधुवन 
आनंदित हो
क्षितिज सारा ...

                                   उदय वीर सिंह 






सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

खुदा भी वाकिफ नहीं.....


















लिखने वालों ने शमशान को शहर,प्यार को
अदावत   तो,   अमृत   को,   जहर    लिखा-


फूल   को    पत्थर  , कभी    नस्तर   लिखा
शाम   को  सवेरा ,  प्रभात  का  प्रहर लिखा -

जब समां  रहा था सूरज ,शाम  की  गोंद में,
 खुबसूरत    प्रभात     का ,  शहर       लिखा -

नज्म     को     हारी    हुयी    बाजी,    कभी 
कलम     को  ,   बिष    बुझा  खंजर   लिखा-

इबादतखाने  को   दोजख ,साकी  को अदब 
महफिलों को हयात ,जाम को रहबर लिखा,

मुद्दतों से बीरान रौशनी गाफ़िल,खंडहर को
महफिलें  रंगीन  करता, नायाब  घर लिखा-

हैरान  हैं आँखे  पढ़  कर ,जो   देख  न  सकीं ,
खुदा भी वाकिफ नहीं जिससे वो मंजर लिखा -

                                              उदय वीर  सिंह 
                                                 30/09/2012