रविवार, 13 जनवरी 2013

मत बांच आदर्श की पाती को ..

मत बांच  आदर्श की पाती को 
जब  चलने  का  संकल्प न हो -
विस्थापित  कर  दो भाषा  को 
शब्दों   का   जब   अर्थ   न  हो-
*
प्रणय   भाव    का   अवगाहन 
प्रमुदित   उर   संचय    करता ,
लालित्यश्रृंगार,सौम्य संवेदन 
भर  नेह  नयन अर्पित  करता -

अभिलाषा पुष्पित हो मन  की 
परिमल  प्रसून  की व्यर्थ न हो-
*
वंचित करता हो  स्नेह, सृजन 
मंगल ,  अभिष्ट  सम  भावों से
उस पथ को तज, अवरुद्ध  करो 
वो  दंश  न  दे  फिर   पांवों को-

निष्ठा  अर्पण  प्रेम  की गलियां 
घन   बरसे  तो   अल्प   न हो  -
*
वाणी में मधुरिम अमिय प्रवाह
जब   भेद    रहा    हो   अंतर्मन 
विषपान का कारण सृजित करे
निर्भय  विद्रोह  का  करो  वरण-

मिटना  तो  अंतिम   रचना  है 
जीवन का जब  विकल्प  न हो-


शूल   प्रलाप   कर    रहा   मंच  
दंश    फूलों    को    देने    वाला 
मत   आह  करो  सह  लो पीड़ा 
कह  रहा  वाचाल  ठगने  वाला -

हों  अदृश्य  कामी   वंचक  जन 

पृथ्वी   पर  इनका  कल्प न हो - 



                                  -उदय वीर सिंह 


   

   

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यदि आदर्श का आवरण कर्मशीलता को बाधित करता हो तो वह भी त्याज्य है।

रविकर ने कहा…

बढ़िया भाव |
शुभकामनायें ||

रविकर ने कहा…

बढ़िया भाव |
शुभकामनायें ||

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




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लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं !

साथ ही
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,,
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं,,,,

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