रविवार, 20 जनवरी 2013

मुक्तसर न हुई उल्फत....

















                         अफसाने न रहे तुम्हें सुनाने  के  लिए 

                                   बेगाने ही रहे दर्द मेरे ज़माने  के  लिए - 

                        जख्म रिसते रहे, मिलती  रही  ठोकर  

                                    न मिला नकाब इन्हें  छिपाने के लिए  -

                         मुक्तसर न हुई उल्फत अपनों  के  लिए  

                                    जिया भी अगर  हूँ  तो बेगानों  के लिए  -

                         कहना    नहीं   माकूल   बेवफा   मैं  हूँ  

                                     पूछो   मैखाने   पड़े  हैं , बताने के  लिए  -
   
                         तोलेगी  ये  दुनियां  तेरा  वजन  कितना
                                    ये हमदर्दी  का आलम है दिखाने के लिए -

                        संगमरमरी  पांव  हैं  ,बेदिल  है  कूंचे  में 

                                     दो कदम भी मुश्किल साथ आने  के लिए-

                                      -  उदय वीर सिंह   


15 टिप्‍पणियां:

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

तोलेगी ये दुनियां तेरा वजन कितना
ये हमदर्दी का आलम है दिखाने के लिए -



ये हमदर्दी का चोला भी तो दिखावटी है

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच कहा और स्पष्ट कहा..काश सम्बन्धों के शब्द उतने ही स्पष्ट होते।

रविकर ने कहा…

बहुत बढ़िया -
सटीक-
शुभकामनायें आदरणीय ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…


स्पष्ट,,शानदार सटीक प्रस्तुति,,,बधाई ,,,,

recent post : बस्तर-बाला,,,

शिवनाथ कुमार ने कहा…

मुक्तसर न हुई उल्फत अपनों के लिए
जिया भी अगर हूँ तो बेगानों के लिए -

बहुत खूब,,, सुन्दर .

Unknown ने कहा…

बेहतरीन रचना बेहतरीन रचना ****तोलेगी ये दुनियां तेरा वजन कितना
ये हमदर्दी का आलम है दिखाने के लिए -

संगमरमरी पांव हैं ,बेदिल है कूंचे में
दो कदम भी मुश्किल साथ आने के लिए-

siddheshwar singh ने कहा…

मुक्तसर या मुख्तसर ?

शारदा अरोरा ने कहा…

लेखन अच्छा लगा ..बड़ी सादगी से सच बयाँ किया है ..

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

वाह।।
बहुत ही बढ़िया रचना सर जी।
:-)

S.VIKRAM ने कहा…

बहुत खूब लिखा है ....loved it...thanks for sharing with us....:)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक और उपयोगी रचना!
फसाने और अफसाने स्वार्थी हो गये हैं!

Madan Mohan Saxena ने कहा…

तोलेगी ये दुनियां तेरा वजन कितना
ये हमदर्दी का आलम है दिखाने के लिए
बहुत ही सुन्दर

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 13/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

BEHTREEN SHERO SE LABREJ UTTAM GAZAL

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत प्रभावशाली रचना !