हसरत से तेरे आईने में देखा
मेरा चेहरा ही नजर आया-
जिसको तू अपना कहता था
तेरा साया भी गैरहाजिर था ,
हुजूम था अपना कहने के लिए
तुझे अकेला शमशान छोड़ आया
क्यूँ रोता है बेजार ,दगाबाजी पर
तुम भी तो दोगे एक दिन ,
बिन बताये , बिन पयाम मितरां
रुखसत कर जायेगा एक दिन-
तेरी दोस्ती से,तेरी दुश्मनी बेहतर
मेरी आँखों में तेरे ख्वाब तो न होंगे,
मुन्तजिर न होंगे किसी कि राह में
किसी के आने के इंतजार तो न होंगें -
मुकद्दर लिखने का दम भरने वाले
तू भी मुकद्दर का तलबगार है ,
चार कंधे, कफ़न दो गज जमीन
का मिलना भी मुकद्दर की बात है-
दिलों की तंगदिली का आलम है
कि टूट जाते हैं , बिखर जाते हैं
अरे दिल क्या हुआ खुदा हो गया
खुदा भी रुठते हैं , मान जाते है-
- उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
वाह!
आपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
दिलों की तंगदिली का आलम है
कि टूट जाते हैं ,बिखर जाते हैं
अरे दिल क्या हुआ खुदा हो गया
खुदा भी रुठते हैं ,मान जाते है-
उम्दा भावपूर्ण,,अभिव्यक्ति,,,
recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
एक दिन जब सबको जाना है,
क्यों रुककर रह यूँ जाना है।
अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति | सादर आभार |
Tamasha-E-Zindagi
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